Saturday, May 10, 2025

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने 17वें वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय बायोक्यूरेशन सम्मेलन को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहाः बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री भारत की भविष्य की जैव अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएगी और “हरित विकास” को बढ़ावा देगी


प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के तहत नीतिगत बदलाव के बाद, जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और जैव स्टार्ट-अप को प्राथमिकता दी गई है और ये अपनी ओर सबसे ज्यादा ध्यान खींच रहे हैः डॉ. जितेंद्र सिंह

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने 3 डेटा सबमिशन पोर्टल के अलावा, जीवन विज्ञान शोधकर्ताओं के लिए क्लाउड-आधारित कम्प्यूटेशनल केंद्र, ‘आईसीई’-एकीकृत कंप्यूटिंग पर्यावरण, का शुभारंभ किया

“भारत पिछले 10 वर्षों में 50 से बढ़कर लगभग 6,000 बायो-स्टार्टअप तक पहुंच गया है”: डॉ. जितेंद्र सिंह

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केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री भारत की भविष्य की जैव अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएगी और “हरित विकास” को बढ़ावा देगी। डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह बात हरियाणा के फरीदाबाद में क्षेत्रीय जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरसीबी) में भारतीय जैविक डेटा केंद्र (आईबीडीसी) द्वारा आयोजित 17वें वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय बायोक्यूरेशन सम्मेलन (एआईबीसी-2024) का उद्घाटन करते कही।

उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नीतिगत बदलाव के बाद, जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और जैव स्टार्टअप को प्राथमिकता दी गई है और अब इसने अग्रणी भूमिका का रूप ले लिया है।”

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “भारत के वैश्विक विजन को अमली जामा पहनाने को ध्यान में रखते हुए, हालिया ‘वोट-ऑन-अकाउंट’ में बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना की परिकल्पना की गई है।”

उन्होंने कहा, यह योजना आज के उपभोग्य विनिर्माण प्रतिमान को पुनर्योजी सिद्धांतों पर आधारित प्रतिमान में बदलने में मदद करेगी। उन्होंने कहा कि यह बायो-स्टार्ट-अप और जैव-अर्थव्यवस्था को अनुपूरित करने के लिए बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर, बायो-प्लास्टिक, बायो-फार्मास्यूटिकल्स और बायो-एग्री-इनपुट जैसे पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करेगा।

इस अवसर पर, डॉ. जितेंद्र सिंह ने जीवन विज्ञान शोधकर्ताओं के लिए क्लाउड-आधारित कम्प्यूटेशनल केंद्र, ‘आईसीई’-एकीकृत कंप्यूटिंग पर्यावरण, का शुभारंभ किया। आईसीई पूरे देश में उपलब्ध एक समर्पित सुपरकंप्यूटिंग एनवायरनमेंट है और इसका उद्देश्य जीनोमिक डेटा के भंडारण, पुनर्प्राप्ति और विश्लेषण के लिए एक क्लाउड एनवायरनमेंट बनाना है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने 3 डेटा सबमिशन पोर्टल का भी शुभारंभ कियाः 1. इंडियन न्यूक्लियोटाइड डेटा आर्काइव-कंट्रोल्ड एक्सेस (INDA-CA) पोर्टल 2. इंडियन क्रॉप फिनोम डेटाबेस पोर्टल, और 3. इंडियन मेटाबोलोम डेटा आर्काइव पोर्टल।

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भारत में होने वाले पहले बायोक्यूरेशन सम्मेलन को संबोधित करते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि भारत ने कोविड-19 के लिए पहला डीएनए-वैक्सीन विकसित किया था। वैक्सीन को विकासित करने की क्षमता में विश्व, भारत की प्रगति को स्वीकार करता है, जो कि कोविड महामारी के दौरान साबित हुई और निवारक स्वास्थ्य सेवा में एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत की सराहना हुई।

मंत्री महोदय ने यह भी साझा किया कि भारत ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के लिए अपना पहला टीका बना रहा है, जिसे सर्वाइकल कैंसर से बचाने के लिए स्कूल जाने वाली सभी किशोरियों को लगाया जाएगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में पिछले 10 वर्षों में, भारत की जैव-अर्थव्यवस्था 2014 में 10 अरब डॉलर से 13 गुना बढ़कर 2024 में 130 अरब डॉलर से अधिक हो गई है। उन्होंने कहा कि भारत को अब दुनिया के शीर्ष 12 जैव प्रौद्योगिकी स्थलों में से एक माना जा रहा है।

डॉ.जितेंद्र सिंह ने कहा, “भारत पिछले 10 वर्षों में 50 से बढ़कर लगभग 6,000 बायो-स्टार्टअप तक पहुंच गया है।”

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत में जैव प्रौद्योगिकी की प्रगति पर प्रकाश डालते हुए कहा, “यह जैव-प्रौद्योगिकी के लिए सबसे अच्छा समय है।”

उन्होंने कहा, “भारत के पास जैव संसाधनों की एक विशाल संपदा है, एक असंतृप्त संसाधन जो दोहन की प्रतीक्षा कर रहा है और विशेष रूप से विशाल जैव विविधता और हिमालय में अद्वितीय जैव संसाधनों के कारण जैव प्रौद्योगिकी के मामले में एक लाभ की स्थिति में है। फिर 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा है और पिछले साल हमने डीप सी मिशन की शुरुआत की थी, जो समुद्र के नीचे से जैव विविधता को निकालने जा रहा है।”

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मूल्यवर्धन को जैव-अर्थव्यवस्था, नीली अर्थव्यवस्था और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के माध्यम से हासिल किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि भारत कुछ क्षेत्रों में न केवल विश्व के बराबर है, बल्कि कई क्षेत्रों में उससे आगे भी है।

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इस सम्मेलन में जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले, आरसीबी के कार्यकारी निदेशक डॉ. अरविंद साहू, डीबीटी की सलाहकार डॉ. सुचिता निनावे तथा विश्व भर के विदेशी प्रतिनिधि और वैज्ञानिक उपस्थित थे।

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