1998 में सत्ता गंवाने के बाद से बीजेपी एक ऐसे नेता को आगे नहीं ला पाई, जो मदन लाल खुराना की करिश्माई छवि का मुकाबला कर सके। इस चुनाव में भी यही स्थिति बनी हुई है।
यह एक ऐसा चुनाव था, जिसे बीजेपी को आसानी से और निर्णायक रूप से जीत लेना चाहिए था। लेकिन मतदान की पूर्व संध्या पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने चमत्कारी वापसी कर ली है, जिससे दिल्ली विधानसभा चुनाव बराबरी का मुकाबला बन गया है—यहाँ तक कि AAP को बढ़त मिलती हुई भी नजर आ रही है। तीन प्रमुख कारकों ने AAP के पक्ष में काम किया है।
AAP की वापसी के तीन बड़े कारण
पहला, अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे और सरकारी बंगले से उनके बाहर निकलने से उनकी छवि को जो नुकसान हुआ था, वह अब काफी हद तक ठीक हो चुका है।
दूसरा, जब से केजरीवाल तिहाड़ जेल से बाहर आए हैं और उन्होंने देखा कि राजनीतिक माहौल AAP के खिलाफ हो रहा है, तब से वे पूरी तरह से चुनावी अभियान में जुट गए हैं। उन्होंने जबरदस्त जनसंपर्क अभियान चलाया, जिसने चुनावी माहौल को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तीसरा, AAP ने विभिन्न सामाजिक वर्गों को लक्षित कर मुफ्त सुविधाओं के वादे किए हैं। महिलाओं को ₹2,100 प्रतिमाह देने की घोषणा इस चुनाव में गेम-चेंजर साबित हो सकती है। इसके अलावा, केजरीवाल ने हिंदू पुजारियों और सिख ग्रंथियों को ₹18,000 प्रतिमाह देने का वादा किया है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त चिकित्सा सुविधा और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा ने भी AAP की अपील को और मजबूत किया है। छात्रों के लिए मुफ्त बस यात्रा की घोषणा खास तौर पर युवा वोटरों को आकर्षित करने के लिए की गई है।
बीजेपी ने भी इसी तरह के वादे किए हैं, लेकिन AAP ने जनता के बीच यह भरोसा बनाया है कि वह अपने वादों को पूरा करती है, खासकर मुफ्त बिजली और पानी योजनाओं के माध्यम से।
AAP के लिए समर्थन के महत्वपूर्ण आधार
पिछले विधानसभा चुनाव में AAP की ऐतिहासिक जीत का मुख्य कारण अरविंद केजरीवाल का करिश्मा था। लेकिन इस बार उनकी छवि को गहरा नुकसान पहुंचा है, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है।
अगर AAP को जीत हासिल करनी है, तो तीन महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों—दलितों, मुस्लिमों और महिलाओं—का भारी समर्थन जरूरी है।
2020 के विधानसभा चुनाव में CSDS के पोस्ट-पोल सर्वे के अनुसार, 83% मुस्लिम, 69% दलित और 60% महिलाएं AAP को वोट देने वालों में शामिल थीं। लेकिन इस बार AAP इन समुदायों का समर्थन पक्का मानकर नहीं चल सकती।
- मुस्लिम मतदाताओं के बीच AAP के प्रति नरम हिंदुत्व (soft Hindutva) की छवि को लेकर असंतोष बढ़ा है।
- 2020 में महिलाओं के बीच AAP और बीजेपी के समर्थन में 25% का अंतर था, लेकिन इस बार AAP महिलाओं के समर्थन में कुछ गिरावट महसूस कर रही है।
- दलित मतदाता अब भी AAP के साथ बने रहने की संभावना रखते हैं।
2020 में AAP ने बीजेपी पर 15% वोटों की बढ़त बनाई थी, लेकिन इस बार वह अंतर घटता हुआ दिख रहा है, जिससे मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। कांग्रेस भी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है और उसका वोट शेयर इस बार दो अंकों में जा सकता है।
बीजेपी की चुनौतियां और नेतृत्व की कमी
तीन महीने पहले बीजेपी के पास AAP पर स्पष्ट बढ़त थी, लेकिन वह इसे बनाए रखने में असफल रही है और अब संघर्ष कर रही है।
दिल्ली में बीजेपी के पास 35%–39% तक का सुनिश्चित वोट बैंक है, लेकिन वह 40% के पार नहीं जा पाती। आखिरी बार 1993 में जब उसने दिल्ली में सरकार बनाई थी, तब उसे 47.82% वोट मिले थे। उस समय बीजेपी के पास मदन लाल खुराना जैसे करिश्माई नेता थे।
लेकिन 1998 में सत्ता गंवाने के बाद से बीजेपी कोई ऐसा नेता नहीं खड़ा कर पाई है, जो दिल्ली के मतदाताओं को उसी तरह से आकर्षित कर सके। इस चुनाव में भी यही समस्या बनी हुई है।
कांग्रेस की रणनीति और चुनावी दुविधा
दिल्ली में कांग्रेस की स्थानीय इकाई चुनावी संघर्ष में जोर लगा रही है, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व एक दुविधा में फंसा हुआ है—क्या उन्हें AAP और केजरीवाल पर आक्रामक हमला करना चाहिए?
कांग्रेस के नेता जानते हैं कि अगर AAP हारती है, तो पूरा विपक्ष कांग्रेस को इस हार के लिए जिम्मेदार ठहरा सकता है, यह कहकर कि कांग्रेस ने बीजेपी की मदद कर दी।
लेकिन दूसरी ओर, कांग्रेस को दिल्ली में अपनी खोई हुई जमीन तभी वापस मिल सकती है, जब AAP कमजोर पड़े और सत्ता से बाहर हो जाए।
चुनाव आयोग और निष्पक्षता को लेकर AAP की चिंता
अंत में, चुनाव आयोग की भूमिका पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी। दिल्ली पुलिस, जो सीधे गृह मंत्री अमित शाह के अधीन आती है, की निष्पक्षता भी चुनावी बहस का मुद्दा बनी हुई है।
AAP को आशंका है कि इन संस्थानों की भूमिका तटस्थ नहीं रहेगी। दिल्ली की सत्ता के गलियारों में इस विषय पर तीखी बहस जारी है।
निष्कर्ष
तीन महीने पहले बीजेपी को स्पष्ट बढ़त थी, लेकिन AAP ने जबरदस्त वापसी की है। अब मुकाबला पूरी तरह से कांटे का हो गया है और AAP के पास बढ़त लेने की संभावना दिख रही है। यह चुनाव अब सिर्फ वादों का नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत पर आधारित होगा, जहां हर पार्टी अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार है।