डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “यह पहल किसानों की आय दोगुनी करने, उनके आर्थिक सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने और कृषि-स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता के अनुरूप है”
किसानों को अब अपनी फसल को गुणात्मक के साथ-साथ मात्रात्मक रूप से भी बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा: डॉ. सिंह
“भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ गई है, जो 2014 में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है”: डॉ. जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-फाउंड्री भारत की भविष्य की जैव-अर्थव्यवस्था (बायोइकोनॉमी) को आगे बढ़ाएगी और “हरित विकास” को बढ़ावा देगी
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज मोहाली में प्रमुख राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट – एनएबीआई) में अपनी तरह की पहली “नेशनल स्पीड ब्रीडिंग क्रॉप फैसिलिटी” का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “यह पहल किसानों की आय दोगुनी करने, उनके आर्थिक सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने और कृषि-स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की प्राथमिकता के अनुरूप है”। उन्होंने कहा की किसानों को अब अपनी फसल को गुणात्मक के साथ-साथ मात्रात्मक रूप से भी बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा की “जैव प्रौद्योगिकी त्वरित बीज (बायोटेक्नोलॉजी स्पीडी सीड्स) सुविधा भारत के सभी राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा करेगी लेकिन यह विशेष रूप से उत्तर भारतीय राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए उपयोगी होगी। उन्होंने आगे कहा की “यह सुविधा उन्नत फसल की प्रजातियों के विकास में तेजी लाकर फसल सुधार कार्यक्रमों में परिवर्तनकारी बदलावों को बढ़ाएगी जो जलवायु परिवर्तन के दौरान स्वयं को बनाए रख सकती हैं और स्पीड ब्रीडिंग फसल विधियों के कार्यान्वयन के साथ बड़ी जनसंख्या की भोजन और पोषण संबंधी मांग में योगदान कर सकती हैं”।
मंत्री महोदय ने कहा कि “एनएबीआई के डीबीटी संस्थान ने ‘जलवायु प्रतिरोधी फसलों’ की तकनीक विकसित की है, इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके किसानों को किसी विशेष मौसम में फसल उगाने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, बल्कि उन्हें जलवायु अनुकूलता की परवाह किए बिना खेती करने की स्वतंत्रता होगी।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत संस्थानों की अब तक की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हमारे संस्थानों के पास आधुनिक आनुवंशिक माध्यमों से फल, फूल और फसल की खेती में विशेष प्रौद्योगिकियां हैं”। उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सीएसआईआर) पालमपुर द्वारा ‘ट्यूलिप’ खेती की सफलता को याद किया, उन्होंने सीएसआईआर लखनऊ द्वारा ‘108 पंखुड़ियों वाले कमल’ के विकास को भी याद किया जिसने टीवी श्रृंखला कौन बनेगा करोडपति (केबीसी) में पुरस्कार जीता था। उन्होंने आगे इस बात पर बल दिया कि कृषि क्षेत्र में नवीनतम प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग भारत में खेती के पारंपरिक व्यवसाय में आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी उपकरणों को पूरक करके देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, कि “जैव-विनिर्माण (बायो-मैन्युफैक्चरिंग) और जैव-निर्माणी (बायो-फाउंड्री) भारत की भविष्य की जैविक-अर्थव्यवस्था (बायो-इकोनॉमी) को आगे बढ़ाते हुए हरित विकास को बढ़ावा देंगे।” उनके अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था को पूरक बनाने के लिए पारंपरिक ज्ञान के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संयोजन पर प्रधानमन्त्री मोदी के विशेष आग्रह को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय समन्वयन और एकीकृत दृष्टिकोण के साथ काम कर रहा है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि प्रधानमंत्री मोदी के अंतर्गत “भारत की जैव-अर्थव्यवस्था पिछले 10 वर्षों में 13 गुना बढ़ गई है और यह 2014 में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है”।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लगातार तीसरे कार्यकाल में, भारत के दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने और आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान लगाया गया है। इसलिए कृषि क्षेत्र का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होगा।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि मोदी सरकार बायो-इकोनॉमी के महत्व के प्रति सचेत है और इसीलिए हाल के ‘लेखानुदान बजट (वोट ऑफ अकाउंट-बजट)’ में जैव-विनिर्माण (बायो-मैन्युफैक्चरिंग) के लिए एक विशेष योजना का प्रावधान किया गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार, कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में परिवर्तनकारी प्रगति और मूल्यवर्धन को सक्षम करने में राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट–एनएबीआई) जैसे संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
यह सुविधा सीधे तौर पर – क) भारत में कृषि और जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और उन्नत फसल किस्मों और उत्पादों के विकास में लगे सरकारी संस्थानों, निजी संस्थानों और अग्रणी उद्योगों के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं, ख) फसल विकास के लिए काम करने वाले पौध उत्पादक (प्लांट ब्रीडर्स) और ग) प्रगतिशील किसानों की सहायता करेगी जो बेहतर उपज और पोषण संबंधी गुणों वाली नई किस्मों को अपनाने में योगदान दे रहे हैं।
अपने संबोधन में, एनएबीआई के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर अश्वनी पारीक ने कहा कि सटीक नियंत्रित वातावरण (प्रकाश) का उपयोग करके स्पीड ब्रीडिंग फसल सुविधा का उपयोग, आर्द्रता, तापमान) प्रति वर्ष एक फसल की चार से अधिक पीढ़ियों को प्राप्त करने के लिए गेहूं, चावल, सोयाबीन, मटर, टमाटर आदि जैसी नई प्रजातियों को विकसित करने के लिए किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट–एनएबीआई) ने ‘अटल जय अनुसंधान बायोटेक (यूएनएटीआई) मिशन (पोषण अभियान) और जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि के लिए जैवप्रौद्योगिकी किसान केन्द्रों (बायोटेक किसान हब) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।