‘महतरियों’ के हाथों में सशक्तिकरण की चाबी
महिलाओं का सशक्तिकरण अब तक अक्सर चुनावी घोषणापत्रों और नीतिगत वादों तक सीमित रह जाता था। लेकिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ ने इसे ज़मीनी हकीकत बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। सामाजिक समानता के क्षेत्र में पहले से ही पहचान बना चुके इस राज्य ने अब आर्थिक समानता की तरफ निर्णायक झुकाव दिखाया है।
महतारी वंदन योजना : सम्मान का सीधा हस्तांतरण
1 मार्च 2024 को शुरू हुई महतारी वंदन योजना इसका सबसे सशक्त उदाहरण है। महज़ 19 महीनों में 69 लाख से अधिक महिलाओं के खातों में 12,376 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि सीधे पहुँचना कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है। यह केवल आर्थिक मदद नहीं, बल्कि निर्णय लेने की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान का सीधा हस्तांतरण है।
योजनाओं का जाल, अवसरों का विस्तार
साय सरकार ने महिलाओं को केवल एक योजना तक सीमित नहीं किया है। सिलाई मशीन सहायता, दीदी ई-रिक्शा अनुदान, मिनी माता जतन योजना, नोनी सशक्तिकरण योजना जैसी पहलें महिलाओं को जीविका से लेकर उद्यमिता तक जोड़ती हैं। महतारी शक्ति ऋण योजना और सक्षम योजना बिना गारंटी के किफायती ऋण उपलब्ध कराकर महिलाओं को उद्यमिता की नई राह देती हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में 800 करोड़ का निवेश और “लखपति दीदी” व “ड्रोन दीदी” जैसी पहलें यह साबित करती हैं कि सरकार महिलाओं को केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि उत्पादक और नवप्रवर्तक के रूप में देख रही है।
सुरक्षा और आत्मनिर्भरता
आर्थिक शक्ति के साथ सुरक्षा का तंत्र भी ज़रूरी है। नवविहान योजना के तहत घरेलू हिंसा पीड़ितों को कानूनी, चिकित्सकीय और काउंसलिंग की समग्र सुविधा मिल रही है। सभी 27 जिलों में सक्रिय सखी वन-स्टॉप सेंटर और 24×7 हेल्पलाइन (181, 112) छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी बनाते हैं।
शुचिता योजना के तहत स्कूलों में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना, लड़कियों को साइकिल वितरण, गर्भवती महिलाओं को पोषण सहयोग—ये सभी पहलें शिक्षा और स्वास्थ्य को सशक्तिकरण के आधार स्तंभ के रूप में स्थापित करती हैं।
बाज़ार और पहचान
नवा रायपुर का 200 करोड़ का यूनिटी मॉल और जश्प्यूर की महिला ब्रांड पहचान ‘लोकल से ग्लोबल’ की मिसाल है। महिलाएँ अब केवल रोज़गार पाने वाली नहीं, बल्कि ब्रांड की संरक्षक और बाज़ार की भागीदार भी बन रही हैं।
असली परीक्षा
2025-26 के बजट में महिला एवं बाल विकास के लिए 8,245 करोड़ का प्रावधान साय सरकार की गंभीरता को दर्शाता है। लेकिन असली चुनौती पारदर्शिता, निगरानी और ज़मीनी अमल की है। यदि यह ढांचा टिकाऊ साबित हुआ तो यह केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और विकासशील लोकतंत्रों के लिए आदर्श बन सकता है।
निष्कर्ष
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सही कहते हैं सशक्तिकरण घोषणाओं से नहीं, बल्कि ठोस बदलाव से जन्म लेता है। छत्तीसगढ़ की यह पहल महज़ योजनाओं का संग्रह नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, गरिमा और भागीदारी का ढांचा है। यह महिलाओं के हाथों में नई संभावनाओं की चाबी सौंपने का साहसिक प्रयास है।