धार ज़िले के छोटे से गाँव भैंसोला में इतिहास रचने जा रहा है। यहाँ बनने जा रहा देश का पहला और सबसे बड़ा पीएम मित्रा (मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल) पार्क न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वस्त्र उद्योग आधारित विकास विज़न का प्रतीक है, बल्कि मध्यप्रदेश की उपजाऊ मिट्टी में वर्षों से पनपते कपास और रेशम को नई उड़ान देने वाला क्षण भी है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने हाल ही में कृषि क्षेत्र की समीक्षा करते हुए साफ कहा कि यह पार्क प्रदेश के छह लाख से अधिक कपास उत्पादकों और असंख्य रेशम किसानों के लिए जीवनरेखा साबित होगा। यह बयान केवल राजनीतिक जुमला नहीं बल्कि एक ठोस नीति और उसके क्रियान्वयन का संकेत है।
कपास और रेशम का पुनर्जागरण
मालवा के कपास किसान और पूर्वी हिस्से के रेशम उत्पादक अब तक कच्चे माल के बाज़ार पर निर्भर रहे हैं, जहाँ उनकी उपज केवल कच्चे माल के रूप में खप जाती थी। पीएम मित्रा पार्क इस ढांचे को उलटने का वादा करता है। यहाँ जिंनिंग, स्पिनिंग, वीविंग, गारमेंट निर्माण और विपणन सब एक ही जगह होगा। इसका मतलब है कि मूल्य संवर्धन यहीं होगा और समृद्धि खेत के और करीब आएगी।
इस परियोजना का पैमाना भी अभूतपूर्व है एक लाख से अधिक प्रत्यक्ष और दो लाख परोक्ष रोज़गार के अवसर। पहले ही 91 कंपनियों को 1,294 एकड़ भूमि आवंटित की जा चुकी है। यह दिखाता है कि यह योजना महज़ कागज़ पर नहीं, बल्कि ज़मीन पर उतरने लगी है।
कृषि मेले और ज्ञान का विस्तार
मुख्यमंत्री का बहुआयामी कृषि मेलों का सुझाव भी दूरदर्शी है। यह केवल औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि किसानों को मार्केटिंग, प्रोसेसिंग और उत्पाद विविधीकरण की जानकारी देने का मंच होगा। अगर कपास और रेशम को उच्च मूल्य वाले निर्यात उत्पाद बनाना है तो किसानों को ब्रांडिंग, पैकेजिंग और बाज़ार की समझ से लैस करना ज़रूरी होगा।
चुनौतियों की अनदेखी नहीं
फिर भी यह सफर आसान नहीं है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर आधारित इस परियोजना की सफलता पारदर्शिता, भूमि अधिग्रहण की सुगमता, पर्यावरण संरक्षण और समयबद्ध क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। यदि ये पहलू उपेक्षित हुए तो यह पार्क केवल अधूरी आकांक्षाओं का स्मारक बनकर रह जाएगा।
साथ ही किसानों की समस्याएँ महंगे इनपुट, ऋण का बोझ और मौसम की अनिश्चितता सिर्फ़ औद्योगिकीकरण से दूर नहीं होंगी। इनके लिए समानांतर नीति समर्थन, मूल्य स्थिरीकरण और आधुनिक कृषि तकनीक का समावेश भी उतना ही ज़रूरी है।
भविष्य की बुनाई
फिर भी धार की यह पहल विशेष महत्व रखती है। जब देश के अन्य छह पीएम मित्रा पार्क अभी प्रस्तावों की स्थिति में हैं, मध्यप्रदेश ज़मीन आवंटन और निर्माण की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ चुका है। यह संकेत है कि यहाँ कृषि और उद्योग को विरोधी नहीं, बल्कि सहयात्री माना जा रहा है।
यदि यह प्रयोग सफल हुआ तो भैंसोला मालवा का एक छोटा गाँव भर नहीं रहेगा, बल्कि भारत के वस्त्र उद्योग का नया ध्रुव बन जाएगा। और यदि यह विफल हुआ तो यह केवल एक और अधूरी कहानी बनकर रह जाएगा।
लेकिन फिलहाल, जब करघे सजने को तैयार हैं और खेत नई फसल देने को आतुर हैं, तब मध्यप्रदेश ने मिट्टी और मशीन, किसान और उद्योग इन दोनों को जोड़ने का दांव खेला है। यही दांव आने वाले कल में न सिर्फ़ प्रदेश, बल्कि पूरे भारत की विकास गाथा को नई दिशा दे सकता है।