धार से उठती विकास की करघे की गूंज
धार की ऐतिहासिक भूमि पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि “गरीब के चेहरे पर मुस्कान लाना ही मेरा पूजा-पाठ है, मेरा संकल्प है,” तो यह केवल एक राजनैतिक घोषणा नहीं थी, बल्कि शासन को नैतिक दायित्व की संज्ञा देने का प्रयास था। यही वह बुनियादी दृष्टिकोण है जिसने मोदी की राजनीति को केवल सत्ता-संचालन से आगे बढ़ाकर जनसेवा और जनसंकल्प की कसौटी पर खड़ा किया है।
कपास से परिधान तक एक नई परिकल्पना
धार में देश के पहले और सबसे बड़े पीएम मित्रा टेक्सटाइल पार्क का शुभारंभ केवल एक औद्योगिक परियोजना नहीं है, बल्कि यह “फार्म टू फैशन टू फॉरेन” की वह परिकल्पना है जो किसानों, कारीगरों और उद्योग जगत को एक ही मूल्य-श्रृंखला में जोड़ती है। मालवा-निमाड़ का कपास, स्थानीय बुनकरों का हुनर और आधुनिक फैक्ट्रियों की आपूर्ति श्रृंखला जब एक धागे में पिरोएंगे, तब वस्त्र उद्योग केवल रोजगार का माध्यम नहीं रहेगा, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की नई पहचान बनेगा।
कल्याण को कर्म का रूप देना
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह स्पष्ट किया कि बीते ग्यारह वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं। यह आँकड़ा कागज़ी उपलब्धि नहीं है, बल्कि करोड़ों परिवारों की उस गरिमा का प्रतीक है जिसे योजनाओं ने वास्तविक जीवन में छुआ है। चाहे वह आयुष्मान भारत हो, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण हो या मातृ-वंदना योजना इन सबके केंद्र में गरीब और वंचित ही हैं।
इसी क्रम में ‘स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार’ अभियान का संदेश दूरगामी है। महिला स्वास्थ्य को परिवार और समाज की समृद्धि का आधार मानकर मोदी ने एक ऐसी धारा को आगे बढ़ाया है जो आने वाले वर्षों में भारत की जनसांख्यिकी और उत्पादकता दोनों को नई दिशा देगा।
स्वदेशी की पुनर्प्रतिष्ठा
धार की धरती से दिया गया स्वदेशी का संदेश केवल भावनात्मक आह्वान नहीं है, बल्कि आर्थिक संप्रभुता का सूत्र है। प्रधानमंत्री का यह कहना कि “हर बार भारतीय वस्तु खरीदने पर हम अपने किसान, मजदूर और उद्योगपति को सशक्त करते हैं” हमें याद दिलाता है कि आत्मनिर्भरता केवल उत्पादन की अवधारणा नहीं है, बल्कि उपभोग की जिम्मेदारी भी है। जब नागरिक स्वयं “यह स्वदेशी है” कहकर गर्व महसूस करेंगे, तब आर्थिक राष्ट्रवाद जड़ों से सशक्त होगा।
इतिहास से संवाद
मोदी का भाषण इतिहास के संदर्भों से भी ओतप्रोत रहा देवी अहिल्याबाई होल्कर की करुणा, महाराजा भोज का पराक्रम और महात्मा गांधी का स्वदेशी आंदोलन। इन प्रसंगों के सहारे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आज की औद्योगिक परियोजनाएँ भी हमारी सभ्यता की उस निरंतरता का हिस्सा हैं जिसमें त्याग, श्रम और आत्मगौरव की परंपरा जुड़ी हुई है।
विकसित भारत की ओर
प्रधानमंत्री का यह कथन कि “विकसित भारत 2047 कोई कल्पना नहीं, यह हमारा राष्ट्रीय यज्ञ है” वास्तव में भारत की सामूहिक चेतना को जाग्रत करने का प्रयास है। चार स्तंभ गरीब, किसान, महिला और युवा इसी यज्ञ के वे आधार हैं जिन पर नए भारत की इमारत खड़ी होगी।
निष्कर्ष
धार से निकली यह गूंज केवल एक औद्योगिक पार्क की शुरुआत नहीं है। यह उस भारत की झलक है जो गरीबी उन्मूलन को पूजा मानता है, महिलाओं के सशक्तिकरण को विकास की शर्त समझता है और स्वदेशी को आत्मसम्मान का प्रतीक। प्रधानमंत्री मोदी ने वस्त्र उद्योग के करघे पर केवल कपड़ा नहीं बुना है, बल्कि भारत के भविष्य का नया ताना-बाना रचा है जहाँ खेत, करघा और कारखाना मिलकर समृद्धि की नई गाथा लिखेंगे।