छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के कार्तला विकासखंड का एक छोटा-सा गाँव केरवाडवारी, वर्षों तक शिक्षा की उपेक्षा झेलता रहा। विशेषकर उच्चतर माध्यमिक स्तर पर भौतिकी, रसायन और संस्कृत जैसे विषयों के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की अनुपस्थिति ने ग्रामीण विद्यार्थियों की संभावनाओं को सीमित कर दिया था। विज्ञान की पढ़ाई को लेकर फैला भय और संस्कृत की कठिन छवि ने अनेक विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा और पेशेवर क्षेत्रों से दूर रखा।
लेकिन मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में लागू “युक्तियुक्तिकरण” प्रक्रिया ने यह परिदृश्य बदलना शुरू कर दिया है। पहली बार इस विद्यालय को भौतिकी, रसायनशास्त्र और संस्कृत के नियमित व्याख्याताओं की सुविधा मिली है। यह बदलाव केवल शैक्षणिक उपलब्धि नहीं, बल्कि पीढ़ीगत परिवर्तन का द्वार है।
नई ऊर्जा और आत्मविश्वास
कक्षा 11वीं और 12वीं के विद्यार्थियों के लिए अब कठिन विषय जिज्ञासा का विषय बन रहे हैं। शिक्षक न सिर्फ़ पाठ्यपुस्तकों तक सीमित हैं, बल्कि व्यावहारिक उदाहरणों के ज़रिये जटिल अवधारणाओं को सरल बना रहे हैं। विशेषकर ग्रामीण बेटियों के लिए यह माहौल अभूतपूर्व है, जहाँ प्रश्न पूछना और जिज्ञासा व्यक्त करना अब सहज हो गया है।
गाँव के लिए यह परिवर्तन किसी वरदान से कम नहीं। विज्ञान के नियमित शिक्षण ने विद्यार्थियों के सामने इंजीनियरिंग, चिकित्सा और तकनीकी शिक्षा जैसे क्षेत्रों के द्वार खोल दिए हैं। ये रास्ते केवल रोज़गार नहीं, बल्कि सामाजिक उन्नति और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाते हैं।
शिक्षा में समानता की ओर कदम
विद्यालय के प्राचार्य सतीश कुमार गुप्ता ने सही कहा है कि छात्रों का उत्साह बढ़ा है और विज्ञान संकाय में नामांकन भी बढ़ने की संभावना है। यह अनुभव सिर्फ़ एक विद्यालय की कहानी नहीं, बल्कि उस सच्चाई की झलक है कि बिना प्रशिक्षित शिक्षकों के ग्रामीण विद्यालय कभी भी शहरी विद्यालयों की बराबरी नहीं कर सकते।
इस पहल ने स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा सुधार केवल इमारतें और संसाधन जुटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी पूंजी मानव संसाधन यानी शिक्षक ही हैं। यदि यही नीति पूरे राज्य में लागू की जाती है तो यह छत्तीसगढ़ के आदिवासी और वनांचल क्षेत्रों के लिए अवसरों का एक शांत क्रांति साबित हो सकती है।
चुनौतियाँ और उम्मीदें
ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया है, और यह आभार नीतियों और जन आकांक्षाओं के दुर्लभ मेल का प्रतीक है। अब असली चुनौती इन पदों की स्थायित्व सुनिश्चित करने, शिक्षकों के बार-बार तबादले रोकने और शिक्षण पद्धति को जीवंत बनाए रखने की है।
फिलहाल, केरवाडवारी के विद्यार्थियों के लिए विज्ञान और संस्कृत अब डर का कारण नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का प्रतीक बन गए हैं। यह परिवर्तन इस बात का प्रमाण है कि सही शिक्षक, सही समय पर, सही जगह पहुँचें तो शिक्षा दूरस्थ गाँवों तक भी उम्मीद और उज्ज्वल भविष्य का मार्ग बना सकती है।




