Thursday, August 21, 2025

Latest Posts

वर्तमान के वर्धमान अनंत यात्रा पर….. – विष्णुदत्त शर्मा

जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने शनिवार-रविवार की दरमियानी रात संल्लेखना पूर्वक समाधि (देह त्याग) ले ली। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ से आध्यात्मिक चेतना का यह तेजस्वी सूर्य अपनी अनंत यात्रा के लिए प्रस्थान कर गया। संत के रूप में पूज्यश्री का संपूर्ण जीवन ही दर्शन का सुदर्शन संदर्भ है। जिनके आचरण में ही जीवों के लिए करूणा पल्लवित होती हो, जिनके विचारों में प्राणी मात्र के कल्याण का शुभ संकल्प हो, जिनकी देशना में जन-मन के अंतःकरण की जागृति का संदेश हो, ऐसी दिव्यात्मा की भू-लोक से अनुपस्थिति अनंतकाल तक अंधेरे की उपस्थिति का अनुभव करवाएगी। महाराजश्री के विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से भी ओतप्रोत रहे। इसीलिए, अनंत अवसरों पर अखंड रूप से इस विचार की आवृत्ति होती रही कि आचार्यश्री के विचारों को संकलित करना छोटी-सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास है।

पूज्यश्री की सहज और प्रवाहमयी उपमाएं जन सामान्य को भी दुर्लभ विषय समझने में सरलता प्रदान करती हैं। सत्संग और सानिध्य के कालखंड में आचार्य श्री ने अनेक अवसरों पर स्पष्ट किया कि जैन धर्म दो शब्दों से बना है – जैन और धर्म। जैन से अभिप्राय ‘जिन’ के उपासक से है। “कर्मारातीन जयतीति जिनः” अर्थात जिसने काम, क्रोध, मोह आदि अपने विकारी भावों को जीत लिया है, वह ‘‘जिन” कहलाता है। “जिनस्य उपासकः जैनः” अर्थात् ‘जिन’ के उपासक को जैन कहते हैं। जो व्यक्ति ‘जिन’ के द्वारा बताए मार्ग पर चलते हैं और उनकी आज्ञा को मानते हैं, वे जैन कहलाते हैं। ऐसे जैन के धर्म को जैन धर्म कहते हैं। यही जैन धर्म का भी शाब्दिक अर्थ है।

देश के यशस्वी प्रधानमंत्री और दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी से भी आचार्यश्री का गहरा जुड़ाव रहा है। वर्ष 2016 में भोपाल की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री जी ने उनसे भेंट भी की थी। राष्ट्र धर्म और जन सेवा के पवित्र उद्देश्य की व्याख्या करने के लिए 28 जुलाई 2016 को पूज्यश्री ने मध्यप्रदेश विधानसभा में अपना प्रवचन भी दिया और गत वर्ष चंद्रगिरि तीर्थ पर ही आचार्यश्री का आशीर्वाद मा. प्रधानमंत्री जी को प्राप्त हुआ।

संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगाम जिले में हुआ। उनका बचपन का नाम विद्याधर था। इसके बाद उन्होंने दीक्षा राजस्थान में ली थी। उल्लेखनीय यह भी है कि महाराजश्री के शिष्य मुनि क्षेमसागर ने उनके ऊपर जीवनी भी लिखी। इसका अंग्रेजी अनुवाद “इन द क्वेस्ट ऑफ सेल्फ” के रूप में किया गया है। महाराजश्री शास्त्रीय (संस्कृत और प्राकृत) और कई आधुनिक भाषाओं, हिंदी, मराठी और कन्नड़ के विशेषज्ञ थे। वे हिंदी और संस्कृत के एक विपुल लेखक भी रहे हैं। कई शोधकर्ताओं ने स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट डिग्री के लिए उनके कार्यों का अध्ययन किया है।

विद्यासागर महाराज को आचार्य पद की दीक्षा आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज ने 22 नवंबर 1972 को अजमेर राजस्थान के नसीराबाद में दी थी। इसके बाद आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज ने आचार्य श्री के मार्गदर्शन में ही 1 जून 1973 को समाधि ली थी। ऐसा पहली बार हुआ था, जब एक गुरु ने पहले शिष्य को दीक्षित किया और फिर उन्हीं के मार्गदर्शन में समाधि ली। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज देश के ऐसे अकेले आचार्य थे, जिन्होंने अब तक 505 मुनियों को दीक्षा दी।

जिन उपासना की और उन्मुख आचार्यश्री तो सांसारिक आडंबरो से विरक्त रहे । इस युग के तपस्वियों की परंपरा में आचार्यश्री अग्रगण्य थे। परमात्मा के उपदेशों पर चलने वाले इस पथिक का प्रत्येक क्षण जागरूक व आध्यात्मिकता से भरपूर रहा।

उनके विशाल व विराट व्यक्तित्व के अनेक पक्ष थे, तथा सम्पूर्ण भारतवर्ष उनकी कर्मस्थली थी।

ज्ञान, करुणा व सद्भावना से परिपूर्ण उनकी शिक्षाएं सदैव समाज और संस्कृति के उत्कर्ष के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती रहेंगी। समाधिस्थ आचार्य श्री के चरणों में मेरा कोटिशः नमन।

(लेखक- मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं खजुराहो से लोकसभा सांसद हैं.)

Latest Posts

spot_imgspot_img

Don't Miss

Stay in touch

To be updated with all the latest news, offers and special announcements.