कभी-कभी राष्ट्रों के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब नेतृत्व केवल शासन नहीं करता, बल्कि युग को दिशा देता है। जब कोई नेता केवल राजनीतिक व्यक्तित्व भर न रहकर पूरे सभ्यता-चक्र की आकांक्षाओं का प्रतीक बन जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले एक दशक में ऐसे ही व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं। आज उनकी छवि न सिर्फ़ भारत के सवा अरब नागरिकों के लिए प्रेरणा-स्रोत है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी भारत की पहचान का पथप्रदर्शक बन चुकी है।
संकटों में सुदृढ़ता का परिचय
सच्चे नेतृत्व की परीक्षा स्थिरता के दिनों में नहीं, बल्कि संकट की घड़ी में होती है। महामारी, ऊर्जा संकट, वैश्विक अव्यवस्था और भू-राजनीतिक तनाव के बीच भारत ने न केवल स्थिरता दिखाई, बल्कि नई ऊँचाइयाँ हासिल कीं। स्वदेशी वैक्सीन का तीव्र निर्माण और दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का संचालन यह साबित करता है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैज्ञानिक क्षमता एक साथ आती हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से 60 करोड़ से अधिक लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा देना केवल कल्याणकारी कदम नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय के नए व्याकरण की रचना है। इसी प्रकार, वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्रधानमंत्री वय वंदना योजना ने नीतियों में करुणा का स्वर जोड़ा है।
विकास का नया व्याकरण
मोदी के नेतृत्व को केवल आर्थिक परिप्रेक्ष्य से आँकना उसकी व्यापकता को कम कर देगा, फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत की आर्थिक दिशा को उन्होंने साहसिक और निर्णायक मोड़ दिया है। 2014 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की सीढ़ी पर 11वें पायदान से चढ़कर भारत आज चौथे स्थान पर पहुँच चुका है। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहलें केवल नारे नहीं थीं, बल्कि उन्होंने भारत को उपभोक्ता बाजार से नवाचार और महत्वाकांक्षा की प्रयोगशाला में बदल दिया।
गाँव-गाँव तक पहुँचा जल जीवन मिशन उस परिवर्तन की मिसाल है जिसने करोड़ों घरों तक स्वच्छ पेयजल पहुँचाया। यदि अटल बिहारी वाजपेयी की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने सड़कों से जुड़ाव दिया था, तो मोदी की यह पहल जीवनदायिनी धारा बनकर सामने आई।
वैश्विक मंच पर भारत
नेतृत्व की असली पहचान विदेश नीति में भी झलकती है। मोदी के दौर में भारत की छवि केवल एक उभरती शक्ति की नहीं रही, बल्कि एक सभ्यतागत ताकत की बनी है। जी-20 की अध्यक्षता, अमेरिका से लेकर अबू धाबी तक नई साझेदारियाँ, और वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन को वैश्विक कूटनीति का मार्गदर्शक बनाना इन सबने भारत को नई ऊँचाई दी है।
विखंडन के युग में मोदी का भारत एकता की भाषा बोलता है, और स्वार्थपरक राजनीति के बीच साझा भविष्य की व्याख्या करता है। यही कूटनीति को नया व्याकरण देने का प्रयास है।
2047 का संकल्प: विकसित भारत
मोदी का विकसित भारत 2047 केवल एक प्रशासनिक लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक सभ्यतागत संकल्प है। यह वह प्रतिज्ञा है जिसमें आर्थिक शक्ति, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, तकनीकी नवाचार और आध्यात्मिक धरोहर सब एक सूत्र में जुड़े हैं। भारत को केवल वैश्विक भागीदार नहीं, बल्कि विश्वगुरु बनाने का उनका स्वप्न इसी संकल्प का मूल है।
निष्कर्ष: एक युग-निर्माता का नेतृत्व
आज जब मोदी एक और वर्ष पूरे कर रहे हैं, तो यह स्पष्ट है कि भारत किसी चौराहे पर नहीं, बल्कि उस बिंदु पर खड़ा है जहाँ इतिहास और भविष्य मिलते हैं। उनकी नीतियों को मात्र प्रशासनिक सुधार कहना उनके नेतृत्व की गहराई को कम आँकना होगा। मोदी केवल प्रधानमंत्री नहीं हैं; वे भारत की आत्मविश्वास भरी जागृति का प्रतीक बन चुके हैं।
सदियों की पराधीनता और गरीबी झेलने वाले राष्ट्र के लिए यह आत्मगौरव और वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ता कदम किसी युगांतकारी घटना से कम नहीं है। यदि 20वीं सदी औद्योगिक महाशक्तियों की रही, तो 21वीं सदी में भारत के विश्वगुरु बनने की संभावना और भी प्रबल है। इस महागाथा में नरेंद्र मोदी न केवल एक वास्तुकार हैं, बल्कि प्रतीक भी हैं।