जब स्वास्थ्य नीतियों की चर्चा अक्सर आंकड़ों और तकनीकी शब्दावली तक सिमट जाती है, तब मध्यप्रदेश ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जो केवल आँकड़ों में ही नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से भी प्रेरणादायी है। 17 सितम्बर को “स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार” अभियान के तहत राज्य ने एक ही दिन में 14,573 स्वैच्छिक रक्तदान और 20,379 लाभार्थियों की सिकल सेल रोग की जांच कराकर राष्ट्रीय स्तर पर नया कीर्तिमान स्थापित किया। यह उपलब्धि केवल प्रशासनिक दक्षता नहीं बल्कि एक सामूहिक संकल्प का परिणाम है, जिसने दिखा दिया कि जब स्वास्थ्य को साझा जिम्मेदारी मान लिया जाए तो असंभव भी संभव प्रतीत होने लगता है।
पहला स्थान और उसका महत्व
किसी भी क्षेत्र में देश में प्रथम स्थान पाना साधारण उपलब्धि नहीं होती, विशेषकर तब जब विषय रक्तदान और आनुवंशिक रोगों की जांच जैसे चुनौतीपूर्ण हों। यह केवल सरकारी मशीनरी की कुशलता का संकेत नहीं बल्कि डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सामुदायिक संगठनों और सामान्य नागरिकों के एक साथ खड़े होने की मिसाल है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह कहना कि इस उपलब्धि को बनाए रखना सामूहिक जिम्मेदारी है, एक राजनीतिक कथन मात्र नहीं बल्कि स्वास्थ्य नेतृत्व की स्थायी आवश्यकता का स्मरण है।
महिलाओं को केंद्र में रखकर सुधार
अभियान का शीर्षक “स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार” इस तथ्य की स्पष्ट स्वीकृति है कि महिलाओं का स्वास्थ्य ही समाज की समग्र भलाई का आधार है। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर लंबे समय से भारत की विकास गाथा पर धब्बा रहे हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश द्वारा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर लगाए गए व्यापक स्वास्थ्य शिविर इस असमानता को चुनौती देने का साहसिक कदम हैं। गर्भवती महिलाओं की जांच, किशोरियों में एनीमिया की स्क्रीनिंग, पोषण, मासिक धर्म स्वास्थ्य, टीबी, कुष्ठ और मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषयों को शामिल करना इस अभियान की समग्र सोच को दर्शाता है।
प्रतीकात्मकता से आगे
इस पहल का वास्तविक मूल्य आँकड़ों तक सीमित नहीं है। सिकल सेल रोग की जांच, विशेषकर आदिवासी इलाकों में, यह दिखाती है कि राज्य केवल संक्रामक बीमारियों तक सीमित नहीं है बल्कि आनुवंशिक और गैर-संचारी रोगों की चुनौती से भी जूझने को तैयार है। वहीं, स्वैच्छिक रक्तदान एक गहरे सामाजिक संदेश को भी प्रसारित करता है जीवन का उपहार देना ऐसा नागरिक कर्तव्य है जो जाति, वर्ग और क्षेत्र की सीमाओं से परे समुदायों को जोड़ता है।
गति को बनाए रखना चुनौती
सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि यह अभियान केवल एक दिन का उत्सव बनकर न रह जाए। स्थायी बदलाव के लिए जांच सुविधाओं, रेफरल सिस्टम और उपचार की निरंतर व्यवस्था स्वास्थ्य ढांचे का हिस्सा बननी चाहिए। साथ ही, स्थानीय नेताओं, महिला स्वयं सहायता समूहों और विद्यालयों के माध्यम से जागरूकता को पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति का हिस्सा बनाना आवश्यक है।
देश के लिए आदर्श
जब राष्ट्रीय विमर्श अक्सर बजट और बड़े अस्पतालों की घोषणाओं तक सीमित रह जाता है, तब मध्यप्रदेश ने यह दिखाया है कि स्वास्थ्य नेतृत्व का रास्ता केवल बड़े निवेश से नहीं बल्कि दूरदर्शिता, जनसहभागिता और संगठन क्षमता से भी प्रशस्त किया जा सकता है। यदि इस अभियान की गति निरंतर बनी रही, तो यह अन्य राज्यों के लिए मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुधार का आदर्श मॉडल बन सकता है।
निष्कर्ष
लोक स्वास्थ्य किसी भी राज्य के विकास का सच्चा दर्पण होता है। मध्यप्रदेश ने यह दिखाया है कि जब स्वास्थ्यकर्मी और नागरिक एक साथ सुधार की धुरी बनते हैं, तो समाज नई ऊर्जा से आगे बढ़ता है। यह पुराना सत्य एक नए रूप में सामने आया है कि “जब नारी स्वस्थ होती है तो परिवार सशक्त होता है, और जब परिवार सशक्त होता है तो राज्य भी मजबूत खड़ा होता है।”