राजनीति से राष्ट्रनिर्माण तक की यात्रा
स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत कम नेता हुए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय जीवन की धड़कन और उसकी दिशा दोनों को इतनी गहराई से बदला हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपने 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, तो देश-विदेश से उमड़ते शुभकामनाओं के संदेश केवल उनके लंबे कार्यकाल का नहीं, बल्कि उस परिवर्तनकारी यात्रा का उत्सव हैं जिसने भारत की आत्मछवि को ही नया आकार दिया।
मध्य प्रदेश में यह उत्सव और भी खास है। प्रधानमंत्री ने अपने जन्मदिन पर यहाँ पीएम मित्र टेक्सटाइल पार्क की आधारशिला रखी। यह परियोजना न केवल कपास उत्पादकों की किस्मत बदलने का वादा करती है, बल्कि इस बात का प्रतीक भी है कि मोदीजी अपने व्यक्तिगत पड़ावों को हमेशा राष्ट्रीय हित और विकास से जोड़ते हैं।
निराशा से नवजीवन तक
साल 2014 का भारत याद कीजिए। भ्रष्टाचार के घोटालों ने जनता का विश्वास डगमगा दिया था, अर्थव्यवस्था ठहरी हुई थी और युवाओं के बीच मोहभंग फैल चुका था। ऐसे समय में मोदी केवल निरंतरता के संरक्षक बनकर नहीं आए, बल्कि एक टर्निंग प्वाइंट के रूप में उभरे। उन्होंने राष्ट्रवाद, आत्मनिर्भरता और दक्षता को नई राजनीतिक भाषा बनाई।
आज एक दशक बाद उनके काम की छाप हर क्षेत्र में दिखती है। स्वच्छ भारत ने सफाई को आदत नहीं, आंदोलन बना दिया। स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया ने उद्यमिता और तकनीक को भारत की ताक़त बनाया। “आत्मनिर्भर भारत” ने देश को वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच आत्मविश्वास से खड़ा किया। आलोचनाएँ हुईं, लेकिन यह भी सच है कि इन पहलों ने समाज के हर वर्ग में भागीदारी, गर्व और उद्देश्य की भावना जगाई।
वैश्विक मंच पर भारत
मोदी ने भीतर से कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाया तो बाहर से भारत को एक सशक्त आवाज़ दी। जी-20 की मेज़बानी हो, सीमाओं पर सख़्ती हो, अंतरिक्ष की उड़ानें हों या फिर संकटग्रस्त क्षेत्रों से भारतीयों की घर वापसी, हर जगह उन्होंने भारत की छवि को नई ऊँचाई दी। यही कारण है कि उनके प्रति वैश्विक स्वीकृति लगातार उच्चतम स्तर पर बनी हुई है।
एक व्यक्ति, एक युग
मोदी का जीवनवृत्त भी इस छवि को मज़बूती देता है। साधारण परिवार से निकलकर लोकतंत्र के सर्वोच्च पद तक पहुँचना यह सिखाता है कि नेतृत्व वंश परंपरा नहीं, बल्कि जनता का विश्वास होता है। समर्थक उन्हें “युग-दृष्टा” कहते हैं, जबकि आलोचक केंद्रीकरण को लेकर सावधान करते हैं। लेकिन एक बात निर्विवाद है मोदी को नज़रअंदाज़ करना असंभव है।
विश्वगुरु की ओर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति से लेकर डिजिटल समावेशन और औद्योगिक क्रांति की दिशा में, प्रधानमंत्री की दृष्टि लगातार यही रही है कि भारत केवल विकसित देश ही न बने, बल्कि एक विश्वगुरु बने ज्ञान, नैतिकता और उदाहरण का स्रोत।
निष्कर्ष
नरेंद्र मोदी @ 75 केवल एक जन्मदिन का उत्सव नहीं है, बल्कि एक पूरे दौर का उत्सव है। यह वह कालखंड है जिसने शासन की भाषा बदली, भारत का आत्मविश्वास लौटाया और वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका को पुनर्परिभाषित किया। इतिहास उन्हें परिवर्तनकारी कहे या विवादास्पद, एक बात स्पष्ट है: आज के भारत की रफ़्तार और दिशा दोनों पर उनकी छाप अमिट है।