Saturday, September 20, 2025

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स्वास्थ्य से सशक्तिकरण की ओर

मध्यप्रदेश की शांत क्रांति

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा इस सप्ताह शुरू किया गया “स्वस्थ नारी सशक्त परिवार” अभियान केवल एक और सरकारी योजना नहीं है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ कहीं गहरा है। यह संदेश देता है कि महिलाओं का स्वास्थ्य कोई व्यक्तिगत सूचक नहीं, बल्कि वही धुरी है जिस पर परिवार का कल्याण, समाज की मजबूती और राज्य की विकास यात्रा टिकती है।

नया अध्याय, नई शुरुआत

अभियान के पहले ही दिन 14,573 यूनिट स्वैच्छिक रक्तदान और 20,379 सिकल सेल स्क्रीनिंग जैसे आँकड़े राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश को शीर्ष स्थान पर ले आए। यह केवल सांख्यिकीय उपलब्धि नहीं, बल्कि प्रशासनिक तत्परता और जनसहभागिता का प्रमाण है। यदि यह प्रयास उद्घाटन तक सीमित न रहकर निरंतर जारी रहा, तो यह महिलाओं के स्वास्थ्य की दिशा में ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है।

महिला स्वास्थ्य के इर्द-गिर्द जनस्वास्थ्य की परिभाषा

अभियान केवल मातृ स्वास्थ्य जांच या टीकाकरण तक सीमित नहीं है। इसमें पोषण परामर्श, किशोरियों में एनीमिया की जाँच और उपचार, क्षय रोग और कुष्ठ जैसे रोगों की रोकथाम, मानसिक स्वास्थ्य, दंत और नेत्र देखभाल तक शामिल हैं। मासिक धर्म स्वच्छता और पोषण साक्षरता जैसे विषयों को खुले तौर पर शामिल करना इस पहल की सबसे बड़ी ताकत है। यह स्पष्ट करता है कि महिलाओं का स्वास्थ्य केवल उनका व्यक्तिगत विषय नहीं बल्कि एक सार्वजनिक भलाई है जिस पर पूरे समाज की स्थिरता और उत्पादकता निर्भर करती है।

दो बड़ी चुनौतियाँ: निरंतरता और विश्वसनीयता

भारतीय नीति का अनुभव बताता है कि योजनाएँ अक्सर भव्य शुरुआत के बाद फीकी पड़ जाती हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या स्वास्थ्य शिविर केवल पखवाड़े भर चलेंगे या इन्हें स्थायी बनाया जाएगा? क्या पोषण परामर्श घर-घर में व्यवहार परिवर्तन ला पाएगा? क्या ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र वास्तव में उन जांच सुविधाओं से लैस होंगे जिनका वादा किया गया है? और सबसे अहम, क्या आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं को लंबे समय तक उचित प्रशिक्षण और सम्मान मिलेगा?

राष्ट्रीय महत्व की पहल

मध्यप्रदेश की मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है। ऐसे में यह अभियान केवल महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि आवश्यकता है। यदि राज्य इस पहल को ठोस परिणामों में बदल देता है, तो यह आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों वाले अन्य राज्यों के लिए भी एक अनुकरणीय मॉडल बन सकता है।

आशा और सावधानी का संगम

मुख्यमंत्री द्वारा सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर उचित है, क्योंकि स्वास्थ्य केवल सरकारी आदेशों से नहीं सुधरता। इसके लिए सरकार, चिकित्सा क्षेत्र, सामाजिक संगठनों और परिवारों का साझा प्रयास जरूरी है। लेकिन इतिहास यह भी सिखाता है कि कई बार नेक इरादे संसाधनों की कमी और राजनीतिक इच्छाशक्ति की ढील में दम तोड़ देते हैं।

निष्कर्ष: बेहतर भविष्य की ओर

फिलहाल मध्यप्रदेश इस प्रयास के लिए सराहना का पात्र है। यदि यह अभियान एक दीर्घकालिक आंदोलन का रूप लेता है, तो राज्य वास्तव में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य सूचकांक में अग्रणी बन सकता है। अंततः समाज की प्रगति उन स्मारकों से नहीं आँकी जाती जो वह गढ़ता है, बल्कि उन माताओं और बेटियों से मापी जाती है जिन्हें वह संवारता है। मध्यप्रदेश ने कम से कम इस पल के लिए सही दिशा चुन ली है।

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