मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जब मुरैना की “सोलर-प्लस-स्टोरेज” परियोजना को राष्ट्रीय उपलब्धि बताया तो यह महज औपचारिक टिप्पणी नहीं थी। यह वास्तव में भारत की ऊर्जा यात्रा में एक निर्णायक मोड़ है, जहाँ सौर ऊर्जा जैसी नवीकरणीय शक्ति अब अस्थायी और अविश्वसनीय न होकर स्थायी, भरोसेमंद और कोयले से भी सस्ती सिद्ध हो रही है।
टैरिफ का ऐतिहासिक रिकॉर्ड
इस परियोजना की सबसे बड़ी उपलब्धि है ₹2.70 प्रति यूनिट की ऐतिहासिक दर, जो प्रतिस्पर्धी नीलामी से तय हुई। पहली बार देश में बैटरी स्टोरेज के साथ नवीकरणीय ऊर्जा 95% उपलब्धता के साथ इतनी कम कीमत पर सुनिश्चित हुई है। यह दर अधिकांश कोयला आधारित बिजली से भी कम है। उल्लेखनीय है कि इस नीलामी में देश-विदेश की 16 कंपनियाँ शामिल हुईं और यह लगभग 10 गुना ओवरसब्सक्राइब रही। यह निवेशकों के भरोसे और रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड (RUMSL) की सशक्त तैयारी का प्रमाण है।
तकनीक और नीति का सशक्त मॉडल
परियोजना की डिजाइन इसे अनोखा बनाती है।
- दिन में सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति,
- शाम को बैटरी में संग्रहीत ऊर्जा का उपयोग,
- और सुबह ग्रिड से चार्ज बैटरी से बिजली आपूर्ति।
इस तीन-स्तरीय संरचना के साथ वित्तीय सुरक्षा तंत्र, राज्य गारंटी, ग्रिड अनुपलब्धता पर मुआवजा और पारदर्शी अनुबंध परियोजना को पूरी तरह ‘बैंक योग्य’ बनाते हैं। अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) की सलाह और RUMSL की ज़मीन व ट्रांसमिशन योजना ने इसे एक मजबूत मॉडल में ढाला है।
चंबल क्षेत्र का कायापलट
चंबल, जिसे अब तक पिछड़ेपन से जोड़ा जाता था, इस परियोजना से सामाजिक और आर्थिक रूप से नया जीवन पाएगा। स्थानीय रोजगार, औद्योगिक गतिविधियों और हरित अर्थव्यवस्था से जुड़ने का अवसर यहाँ के युवाओं को नई दिशा देगा। ऊर्जा मंत्री राकेश शुक्ला का यह कहना उचित है कि यह परियोजना सिर्फ बिजली नहीं, बल्कि क्षेत्रीय विकास का जरिया भी है।
राष्ट्रीय और वैश्विक संदेश
दुनिया भर में सौर ऊर्जा को रात में अनुपलब्धता की चुनौती झेलनी पड़ी है। मुरैना का यह मॉडल साबित करता है कि बड़े पैमाने पर बैटरी स्टोरेज के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को 24×7 भरोसेमंद बनाया जा सकता है और वह भी कोयले से सस्ती दरों पर। इससे भारत न केवल घरेलू स्तर पर ऊर्जा आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि वैश्विक बाजारों को भी यह संदेश देगा कि भारत नवीकरणीय क्षेत्र में केवल क्षमता ही नहीं, बल्कि नवाचार का भी नेतृत्व कर रहा है।
आगे की चुनौती और वादा
फिर भी, असली परीक्षा है इस मॉडल का विस्तार। क्या अन्य राज्य भी इसे अपनाएंगे? क्या वित्तीय संसाधन किफायती रहेंगे? और क्या नीति व तकनीक का यह संतुलन बरकरार रखा जाएगा? इन सवालों का उत्तर ही तय करेगा कि यह उपलब्धि एक मील का पत्थर बनेगी या स्थायी मार्गदर्शक।
निष्कर्ष
मुरैना ने यह साबित किया है कि भारत की ऊर्जा क्रांति अब कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविकता है। यह परियोजना दिखाती है कि जब नीति, तकनीक, वित्त और प्रशासन एक साथ तालमेल में हों, तो नवीकरणीय ऊर्जा न केवल पर्यावरण अनुकूल बल्कि आर्थिक रूप से भी टिकाऊ हो सकती है। यदि इसे बड़े पैमाने पर दोहराया गया तो यह भारत को हरित और भरोसेमंद ऊर्जा ग्रिड की ओर निर्णायक छलांग दिलाएगा।




