प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हालिया इतानगर दौरा केवल विकास योजनाओं का उद्घाटन भर नहीं था, बल्कि यह उस पूर्वोत्तर भारत की नई पहचान का प्रतीक है जिसे लंबे समय तक उपेक्षा झेलनी पड़ी। लगभग 5100 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की सौगात के साथ यह संदेश भी दिया गया कि अरुणाचल अब सिर्फ सीमांत प्रदेश नहीं, बल्कि भारत की उभरती ताकत का केन्द्र है।
संस्कृति और आधुनिकता का संगम
प्रधानमंत्री ने डोनी पोलो की आस्था का उल्लेख करते हुए अरुणाचल को “भारत माता का गौरव” बताया। तवांग मठ की शांति और आधुनिक बुनियादी ढांचे की ऊँचाई को एक सूत्र में पिरोते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह प्रदेश परंपरा और आधुनिकता दोनों का ध्वजवाहक है।
समावेशी शासन का नया अध्याय
बीते दशक में अरुणाचल का केंद्रीय करों में हिस्सा 6,000 करोड़ से बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाना बताता है कि शासन अब दिल्ली तक सीमित नहीं है। मोदी का यह कहना कि “अब देश के अंतिम गाँव को पहला गाँव माना जाएगा” केवल घोषणा नहीं, बल्कि वाइब्रेंट विलेजेज़ प्रोग्राम जैसी योजनाओं में साकार हो रहा है।
आठ लक्ष्मियों का प्रतीक: पूर्वोत्तर
प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के आठ राज्यों को अष्टलक्ष्मी कहकर समृद्धि और जिम्मेदारी दोनों का प्रतीक बनाया। सीमावर्ती गाँवों तक बिजली, सड़क और डिजिटल कनेक्टिविटी पहुँचाना इस सोच का ठोस परिणाम है।
जीवन स्तर में क्रांतिकारी बदलाव
सेला टनल, नए हवाईअड्डे, दिल्ली से सीधी उड़ान जैसी परियोजनाएँ अब हकीकत हैं। जीएसटी की नई दरों से आम परिवारों को राहत और किसानों-उद्यमियों को नए अवसर मिल रहे हैं।
महिलाएँ और किसान: विकास के केंद्र में
तीन करोड़ “लखपति दीदी” बनाने का संकल्प, किसान सम्मान निधि और महिलाओं के लिए छात्रावास जैसी योजनाएँ यह दर्शाती हैं कि सरकार का ध्यान केवल बड़े ढाँचों पर नहीं, बल्कि जमीनी बदलावों पर भी है।
निष्कर्ष
अरुणाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री की घोषणाएँ केवल विकास का रोडमैप नहीं, बल्कि भरोसे और आत्मसम्मान का नया करार हैं। यह करार बताता है कि अब पूर्वोत्तर हाशिये पर नहीं, बल्कि भारत की मुख्यधारा की धड़कन है।
सूरज हर सुबह पूरब से उगता है, और आज अरुणाचल पूरे देश के लिए नई आशा, नए आत्मविश्वास और नए भविष्य का प्रतीक बन चुका है।