अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा एच-1बी वीज़ा पर एक लाख डॉलर का आवेदन शुल्क लगाने का हालिया निर्णय उनकी “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नीति का ताज़ा कदम है। सतही तौर पर यह निर्णय अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करने जैसा प्रतीत होता है, पर वास्तविकता में यह न केवल अमेरिका की तकनीकी बढ़त को चोट पहुँचा सकता है बल्कि भारत जैसे देशों को भी गहरी चोट पहुँचाने वाला है, जो लंबे समय से इस वीज़ा कार्यक्रम के प्रमुख लाभार्थी रहे हैं।
भारत पर सीधा असर
भारतीय आईटी कंपनियाँ एच-1बी वीज़ा की सबसे बड़ी उपयोगकर्ता रही हैं। वित्त, स्वास्थ्य और उपभोक्ता तकनीक जैसे क्षेत्रों में भारतीय पेशेवरों ने अमेरिकी उद्योग को वर्षों से सहयोग दिया है। अब जब आवेदन शुल्क असाधारण रूप से बढ़ा दिया गया है, यह भारत के 280 अरब डॉलर के आईटी निर्यात उद्योग पर सीधा दबाव डालेगा। इतना ही नहीं, हाल ही में अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर शुल्क 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिए हैं। यदि प्रस्तावित हायर (HIRE) एक्ट 2025 पारित हो गया, तो यह संकट और गहरा जाएगा, क्योंकि इसमें विदेशी कर्मचारियों पर अतिरिक्त कर और कंपनियों के लिए छूट खत्म करने जैसी शर्तें हैं।
तकनीकी युग में संरक्षणवाद की विडंबना
यह स्थिति विडंबनापूर्ण है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली वर्षों से यह तर्क देती रही है कि घरेलू स्तर पर पर्याप्त उच्च स्तरीय इंजीनियर और वैज्ञानिक उपलब्ध नहीं हैं। टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने भी हाल ही में चेतावनी दी थी कि अमेरिका में गुणवत्तापूर्ण इंजीनियरों की भारी कमी है। इसके बावजूद, ट्रम्प प्रशासन एच-1बी वीज़ा को “सस्ते श्रम का साधन” बताकर तकनीकी नवाचार की रीढ़ को ही कमजोर करने पर तुला है।
अमेरिका के लिए उल्टा असर
संरक्षणवादी नीतियाँ अक्सर आत्मघाती सिद्ध होती हैं। जैसे ऊँचे आयात शुल्कों ने वैश्विक सप्लाई चेन को अमेरिका से बाहर धकेला, वैसे ही अब तकनीकी कंपनियाँ कनाडा, आयरलैंड या दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर रुख कर सकती हैं। परिणामस्वरूप अमेरिका न केवल विदेशी प्रतिभा से वंचित होगा बल्कि वैश्विक तकनीकी नेतृत्व भी खो सकता है। यह नुकसान सिर्फ भारत का नहीं, बल्कि स्वयं अमेरिका के लिए भी गंभीर होगा।
भारत के लिए सबक
भारत के लिए यह क्षण चेतावनी है। अमेरिकी बाज़ार पर अत्यधिक निर्भरता और राजनीतिक उतार-चढ़ाव पर टिके रहना खतरनाक हो सकता है। अब समय आ गया है कि भारत अपने निर्यात बाज़ारों में विविधता लाए और घरेलू स्तर पर कौशल विकास की नई रणनीति बनाए।
निष्कर्ष
इतिहास गवाह है कि महाशक्तियों का पतन केवल बाहरी प्रतिस्पर्धा से नहीं, बल्कि अपनी ही विरोधाभासी नीतियों से होता है। ट्रम्प की “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” मुहिम अमेरिका को महान बनाने के बजाय संकीर्ण और कमजोर बना सकती है। वहीं भारत के लिए यह अवसर है कि वह आत्मनिर्भरता की दिशा में और तेजी से आगे बढ़े और अपनी तकनीकी क्षमता को वैश्विक स्तर पर नए बाज़ारों में स्थापित करे।