छत्तीसगढ़ सरकार ने मोटापे के बढ़ते संकट के खिलाफ एक संगठित और सशक्त अभियान शुरू किया है—एक ऐसा खतरा जो अब केवल अमीरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बच्चों से लेकर वयस्कों तक सभी वर्गों को प्रभावित कर रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘फिट इंडिया’ और ‘स्वस्थ जीवनशैली’ अभियान से प्रेरित होकर शुरू की गई है, जो न केवल शरीर को स्वस्थ रखने पर बल देती है, बल्कि सोच और जीवनशैली को भी परिवर्तित करने की दिशा में कदम बढ़ाती है।
मोटापा: एक गहराता राष्ट्रीय संकट
आज मोटापा सिर्फ एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल बनता जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, शहरी भारत में हर पाँचवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है। वहीं ‘द लैंसेट’ के अनुमान बताते हैं कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो 2050 तक भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक मोटे लोगों वाला देश बन जाएगा—जहां मोटे वयस्कों की संख्या 180 मिलियन से बढ़कर 449 मिलियन हो सकती है।
मोटापे से न केवल मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और हृदय रोग जैसे खतरे बढ़ते हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है। इसके अतिरिक्त, कामकाजी उत्पादकता में गिरावट और स्वास्थ्य खर्चों में भारी वृद्धि देश की आर्थिक संरचना को भी प्रभावित करती है।
विद्यालयों में शुरू से जागरूकता
स्वास्थ्य की नींव बचपन में रखी जाती है, यह मानते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूली स्तर पर व्यापक जागरूकता अभियान शुरू किया है। विद्यालयों में तैलीय व शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों के दुष्प्रभाव को उजागर करने वाले पोस्टर, कार्यशालाएं और व्याख्यान आयोजित किए जा रहे हैं। सीबीएसई और स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशानुसार, स्कूलों में ‘ऑयल बोर्ड’ और ‘शुगर बोर्ड’ अनिवार्य किए गए हैं, जो छात्रों को यह बताने में मदद करते हैं कि उनके भोजन में छिपा हुआ तेल और चीनी कितना खतरनाक हो सकता है।
इसके साथ ही, विद्यालयों को स्वस्थ भोजन विकल्प सुनिश्चित करने, नियमित शारीरिक गतिविधि (जैसे सीढ़ियाँ चढ़ना, योग, व्यायाम), और जीवनशैली में सुधार लाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
सरकारी योजनाओं की अहम भूमिका
- पोशन अभियान और ‘ईट राइट इंडिया’: इन अभियानों का उद्देश्य है—मोटापा कम करने के लिए बाजरे जैसे पारंपरिक व पोषक अन्नों को बढ़ावा देना।
- नई शिक्षा नीति (NEP) 2020: स्कूल स्तर पर पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा को अनिवार्य बनाकर बच्चों में सही आदतें विकसित करने पर बल देती है।
- आयुष्मान भारत – स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम: शिक्षक ‘हेल्थ एंड वेलनेस एंबेसडर’ के रूप में काम करते हुए स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं।
- FSSAI का डिजिटल कंटेंट: पोस्टर, वीडियो और स्थानीय भाषाओं में शैक्षणिक सामग्री के माध्यम से स्कूली बच्चों और कर्मचारियों को जागरूक किया जा रहा है।
समाज की साझी जिम्मेदारी
मोटापा केवल सरकारी नीतियों से खत्म नहीं होगा। इसके लिए समाज के हर हिस्से—स्कूल, अभिभावक, स्थानीय संस्थाएं, और स्वयं नागरिकों—की भागीदारी जरूरी है। बड़े स्तर पर जागरूकता अभियानों, ऑयल व शुगर बोर्डों की अनिवार्यता, और अनुभव आधारित स्वास्थ्य कार्यशालाओं से जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव की नींव रखी जा रही है।
संपादकीय संदेश: एक स्वस्थ भारत की दिशा में सामूहिक संकल्प
मोटापे के इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिए हमें सजग रहना होगा। हमें केवल अपने लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनानी होगी। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और बच्चों को जंक फूड से दूर रखने जैसे छोटे कदम मिलकर एक बड़े परिवर्तन का आधार बन सकते हैं।
अब समय आ गया है कि हम सब एक स्वर में कहें— “मोटापा हटाओ, स्वस्थ भारत बनाओ!”