अगर भूगोल को ही भाग्य माना जाए, तो देश के बीचों-बीच स्थित मध्यप्रदेश आज भारत की औद्योगिक महत्वाकांक्षाओं का असली केंद्र बनकर उभर रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान के साथ, राज्य एक ऐसी दिशा में बढ़ रहा है, जहां प्राकृतिक धरोहर और आधुनिक औद्योगिक ताकत एक साथ कदम मिला रही हैं।
उमरिया, रायसेन में ₹1,800 करोड़ की अत्याधुनिक रेल कोच निर्माण इकाई का हालिया भूमिपूजन सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि आने वाले औद्योगिक युग का संकेत है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान कि मध्यप्रदेश के पास रक्षा निर्माण का केंद्र बनने की पूरी क्षमता और संसाधन हैं, सिर्फ राजनीतिक प्रशंसा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक मान्यता है कि यह राज्य भौगोलिक, संरचनात्मक और नीतिगत दृष्टि से तैयार है।
भूमि बैंक से औद्योगिक शक्ति तक
48,000 हेक्टेयर का औद्योगिक भूमि बैंक सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह निवेशकों को संदेश है कि मध्यप्रदेश तैयार है। जहां जमीन अधिग्रहण देश में उद्योगों के लिए बड़ी चुनौती है, वहां इस तरह की योजना परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाती है और वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करती है। भूमिपूजन से पहले ही बीईएमएल को जमीन आवंटित किया जाना सरकारी कार्यकुशलता का दुर्लभ उदाहरण है।
राजनाथ सिंह का “मॉडर्न प्रदेश” का दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि मध्यप्रदेश अब उद्योगों के नक्शे पर सिर्फ एक दर्शक नहीं, बल्कि ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ का सक्रिय निर्माता बनना चाहता है।
रक्षा, रेलवे और भारी उद्योग: विकास का त्रिकोण
रक्षा निर्माण, रेलवे इंजीनियरिंग और भारी उद्योग — ये तीनों क्षेत्र एक-दूसरे को मजबूत करते हैं। रेल कोच निर्माण के लिए उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग और धातुकर्म चाहिए; रक्षा उत्पादन को अलग और सुरक्षित सप्लाई चेन की जरूरत होती है; और दोनों ही क्षेत्रों में उच्च कौशल वाले रोजगार पैदा होते हैं जो स्थानीय औद्योगिक पारिस्थितिकी को मजबूत करते हैं।
बीईएमएल का “ब्राह्मा प्रोजेक्ट” 5,000 से अधिक प्रत्यक्ष रोजगार देने का वादा करता है, जबकि इसके साथ बनने वाली सहायक इकाइयाँ धातु, डिजाइन, इलेक्ट्रिकल सिस्टम और फैब्रिकेशन के पूरे नेटवर्क को गति देंगी। हल्के एल्यूमिनियम कोच का निर्माण यह संकेत है कि भारत जटिल विनिर्माण तकनीक में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।
विकास और पर्यावरण का संतुलन
रक्षा मंत्री का यह कहना कि “विकास और पर्यावरण में संतुलन होना चाहिए” सिर्फ औपचारिक बयान नहीं है। औद्योगिक विस्तार तभी टिकाऊ है जब जल-सुरक्षा और पर्यावरण को प्राथमिकता मिले। केन–बेतवा नदी जोड़ परियोजना को कृषि और उद्योग, दोनों के पुनर्जीवन का साधन मानना इसी सोच का हिस्सा है।
राजनीतिक तैयारी का संदेश
उमरिया के मंच पर नेताओं की मौजूदगी — पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर नए मुख्यमंत्री और कृषि, रक्षा व रेलवे जैसे अहम मंत्रालयों के मंत्री — यह दिखाता है कि विकास केवल विभागीय एजेंडा नहीं बल्कि एक साझा राजनीतिक लक्ष्य है। रक्षा कॉरिडोर की मांग सिर्फ क्षेत्रीय हित नहीं बल्कि राष्ट्रीय रक्षा ढांचे में मध्यप्रदेश को रणनीतिक केंद्र बनाने की योजना है।
रायसेन की नई पहचान
सांची की आध्यात्मिक विरासत और भीमबेटका की ऐतिहासिक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध रायसेन अब भारी उद्योगों के केंद्र के रूप में भी अपनी जगह बना रहा है। यह वही संगम है — संस्कृति और आधुनिकता का — जो विकसित भारत के सपने को साकार कर सकता है।
नींव से परिणाम तक
भारत में किसी भी परियोजना की असली परीक्षा शिलान्यास नहीं, बल्कि समयबद्ध और पारदर्शी क्रियान्वयन में होती है। बीईएमएल का 18 महीनों में पहला रेल कोच तैयार करने का लक्ष्य एक कठिन लेकिन प्रेरणादायक उदाहरण होगा।
निष्कर्ष
उमरिया की यह शुरुआत सिर्फ एक राज्य के औद्योगिक जागरण की कहानी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संदेश है — आत्मनिर्भरता नारों से नहीं, बल्कि फैक्ट्री की मशीनों से पैदा होती है; आर्थिक सुरक्षा विदेश से खरीदी वस्तुओं से नहीं, बल्कि देश में बने इंजनों, कोचों और हथियारों से मिलती है।
21वीं सदी में अगर भारत को आर्थिक शक्ति और रणनीतिक स्वायत्तता दोनों हासिल करनी है, तो मध्यप्रदेश वह धड़कन बन सकता है जो औद्योगिक ताकत को पूरे राष्ट्र की नसों में दौड़ाए।