आज़ादी के बाद के राष्ट्र-निर्माण के इतिहास में, बहुत कम घोषणाएं ऐसी हुई हैं जिनमें प्रधानमंत्री जनमन योजना जैसी नैतिक गंभीरता और दूरगामी महत्व हो। राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने इसे 1947 के बाद आदिवासी कल्याण के क्षेत्र में सबसे प्रभावशाली पहल बताया है—एक ऐसी योजना जो भारत के सबसे वंचित और ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित समुदायों के साथ राज्य के रिश्ते को नए सिरे से परिभाषित करने का प्रयास है।
यह केवल राहत पैकेजों का ढेर नहीं, बल्कि एक व्यापक दृष्टिकोण है—मकान, स्वच्छ पेयजल, सार्वभौमिक विद्युतीकरण, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, हर मौसम में चलने वाली सड़कें और मोबाइल कनेक्टिविटी—इन सभी को एकीकृत ढांचे में जोड़ना। लेकिन राज्यपाल का संदेश स्पष्ट था: सिर्फ संख्या नहीं, गरिमा का पुनर्निर्माण ही असली पैमाना है। मिट्टी और लकड़ी के झोपड़ों से लेकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने पक्के घरों तक, हर प्रयास की सफलता गुणवत्ता और सांस्कृतिक सामंजस्य से तय होगी।
ग्राम पंचायत से लेकर ज़िला कलेक्टरेट तक लगातार और सूक्ष्म निगरानी की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया। यही वह कमजोरी रही है जिसने कई सरकारी योजनाओं को कागज़ पर चमकदार रखा लेकिन ज़मीन पर फीका कर दिया। इसीलिए तहसील स्तर के सीईओ द्वारा तिमाही निरीक्षण और स्थानीय संस्कृति के अनुरूप टिकाऊ आवास डिज़ाइन पर जोर दिया गया है—ताकि “डिलीवरी” का मतलब सिर्फ फाइल में टिक लगाने से नहीं, बल्कि जीवन-भर चलने वाली सुविधा से हो।
स्वास्थ्य सेवा पर विशेष ध्यान
योजना में आदिवासी क्षेत्रों की सबसे पुरानी कमी—अंतिम छोर तक स्वास्थ्य सेवा—को गंभीरता से लिया गया है। मोबाइल मेडिकल यूनिट्स का विस्तार होगा और इनमें स्थानीय आदिवासी भाषाओं में संवाद कर सकने वाले कर्मचारी तैनात होंगे। यह सिर्फ भाषा का मामला नहीं, बल्कि भरोसे का पुल है। इसी तरह, आंगनबाड़ी केंद्रों की गुणवत्ता पर जोर देना दर्शाता है कि ये महज़ भवन नहीं, बल्कि बच्चे के जीवन का पहला नागरिक संस्थान हैं।
स्थानीय नवाचार और नेतृत्व निर्माण
जनजातीय कार्य मंत्री कुँवर विजय शाह ने ‘हर घर नल से जल’ जैसी योजनाओं को बिखरी हुई बस्तियों तक पहुंचाने में स्थानीय नवाचारों का उल्लेख किया—ऐसे समाधान जिन्हें अलग-थलग रखने के बजाय पूरे प्रदेश में अपनाना चाहिए। साथ ही, आदि कर्मयोगी अभियान के तहत तीन लाख जमीनी स्तर के नेताओं का प्रशिक्षण एक ऐसा कदम है जो स्थानीय समस्याओं और सरकारी प्रक्रियाओं के बीच सेतु का काम कर सकता है।
चुनौती और अवसर
इतिहास यह भी सिखाता है कि आदिवासी विकास के क्षेत्र में कई बार बड़े वादे विभागीय टकराव और घटती राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण अधूरे रह गए हैं। जनमन योजना की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि स्वास्थ्य, शिक्षा, लोक निर्माण, ग्रामीण विकास, महिला एवं बाल विकास जैसे विभाग अलग-अलग न चलकर एक मिशन की तरह मिलकर काम करें।
राज्यपाल पटेल का तीन महीने में लक्ष्यों को हासिल करने का आह्वान एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि वर्षों से इंतज़ार कर रही बस्तियों के लिए जीवनरेखा है। हर अधूरी सड़क एक ऐसे बच्चे को स्कूल से वंचित रखती है, हर देरी से लगा मोबाइल टावर एक प्रसूता को समय पर मदद से वंचित करता है।
अगर इसे ईमानदारी, संवेदनशीलता और गुणवत्ता के साथ लागू किया गया, तो पीएम जनमन योजना केवल एक कल्याणकारी कार्यक्रम नहीं रहेगी, बल्कि संवैधानिक वादे को निभाने का विलंबित लेकिन ऐतिहासिक प्रयास बन जाएगी—एक नई शुरुआत, जिसमें भारत का संघीय नैतिकता बोध अपने सबसे पहले नागरिकों के प्रति नये सम्मान से भरा होगा।