Thursday, September 11, 2025

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सामाजिक पूँजी में निवेश

भरोसे का संरक्षक बने राज्य

12 सितम्बर को जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव झाबुआ के पेटलावद पहुँचेगे, तो यह केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं होगा, बल्कि भरोसे की राजनीति और सामाजिक अर्थशास्त्र का सबक भी होगा। लाड़ली बहना योजना के तहत 1 करोड़ 26 लाख महिलाओं के खातों में 1541 करोड़ रुपये का सीधा हस्तांतरण, साथ ही पेंशन, एलपीजी सब्सिडी और 345 करोड़ से अधिक के विकास कार्य—ये सब मिलकर यह संदेश देते हैं कि आज शासन का असली आधार “कल्याण” ही है।

सीधे लाभ का सम्मान

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ने पुरानी राजनीति की दलाली और बिचौलियों वाली संस्कृति को तोड़ा है। अब मदद सिर्फ़ रुपयों में नहीं, बल्कि सम्मान में मिलती है। जब लाखों बहनों के खातों में सीधे सहायता पहुँचती है, तो यह केवल उपभोग की ताकत नहीं बढ़ाती, बल्कि आत्मविश्वास भी जगाती है। 53 लाख से अधिक पेंशनभोगियों के लिए भी यह संकेत है कि राज्य उन्हें बोझ नहीं, बल्कि समाज की धड़कन मानता है।

एलपीजी रिफ़िल सब्सिडी जैसी छोटी दिखने वाली मदद भी आदिवासी इलाकों में बड़ी राहत बनती है। धुएँ से भरे रसोईघरों में जो महिलाएँ अब तक दम घुटने को मजबूर थीं, उनके लिए यह साँस लेने का अवसर है।

विकास की ठोस ज़मीन

पेटलावद में सिर्फ़ पैसों का वितरण नहीं होगा। 72 नए निर्माण कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण यह जताता है कि सरकार केवल बाँटने वाली नहीं, बल्कि बनाने वाली भी है। सड़कें, स्कूल और नालियाँ—ये सब भरोसे की ठोस ज़मीन तैयार करते हैं।

साथ ही, “झाबुआ के संजीवक” नामक पुस्तक का प्रकाशन, जिसमें आदिवासी जड़ी-बूटियों का ज्ञान दर्ज है, यह संदेश देता है कि विकास का मतलब सिर्फ़ कंक्रीट और लोहे की इमारतें नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोना है।

समावेश का संदेश

कार्यक्रम में दिव्यांगजनों को विशेष चारपहिया मोटरसाइकिलें सौंपना शायद संख्या में छोटा कदम हो, लेकिन प्रतीकात्मक रूप से बड़ा है। यह दृश्य बताता है कि समाज के सबसे हाशिये पर खड़े लोगों को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा रहा।

आगे की कसौटी

लाड़ली बहना योजना और ऐसी अन्य योजनाएँ निस्संदेह राजनीतिक स्वीकार्यता और लोकप्रियता ला रही हैं। लेकिन असली कसौटी यह होगी कि क्या ये योजनाएँ महिलाओं को स्थायी आत्मनिर्भरता तक पहुँचा पाएँगी, या फिर वे हमेशा सरकारी सहारे पर ही टिकी रहेंगी।

निष्कर्ष

आज की लाड़ली बहन अगर कल आत्मनिर्भर नागरिक बने, तभी इन योजनाओं की सफलता मानी जाएगी। राज्य का असली धर्म यही है कि वह अपने नागरिकों के कंधों से बोझ उतारे, लेकिन उनके हाथों में ताकत भी रखे।

 

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