15 अगस्त की आहट के साथ इंदौर आज जैसे तिरंगे में सांस ले रहा था। गलियों से लेकर छतों तक, दुकानों से लेकर चौराहों तक, हर ओर भगवा, सफेद और हरे रंग का एक जीवंत समंदर उमड़ पड़ा था। हर फहराती पताका सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि एक भावना थी जो हर दिल में लहरा रही थी। इसी माहौल में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंच से साफ़ कहा,
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र बन चुका है। अब अन्याय बर्दाश्त नहीं होगा।”
ये शब्द महज़ एक समारोह की औपचारिकता नहीं थे, बल्कि उस आत्मविश्वास का ऐलान थे जो बीते दशक में भारत के कदमों में आ चुका है — कूटनीति में साहस, रक्षा नीति में मजबूती और रणनीतिक असर का विस्तार।
जन-जागरण और जन-गौरव का संगम
यह अवसर था शहर के भव्य “हर घर तिरंगा, हर घर स्वच्छता” अभियान का, जिसमें देशभक्ति और सफ़ाई—दोनों की धारा एक साथ बह रही थी। राजवाड़ा से लेकर गांधी हॉल तक की सड़कों पर नागरिक ऐसे उमड़े मानो पूरा शहर अपने ही आदर्शों का सम्मान कर रहा हो।
भीड़ में कोई ऊँच-नीच नहीं थी—मंत्री और सफ़ाईकर्मी साथ-साथ चल रहे थे, एनसीसी के कैडेट पारंपरिक नर्तकों की लय में कदम मिला रहे थे, और बालकनियों से बरसते गेंदे के फूल पूरे नज़ारे को उत्सव में बदल रहे थे।
प्रतीक और पहल एक साथ
मुख्यमंत्री ने इंदौर की स्वच्छता में आठ साल की लगातार अव्वल उपलब्धि के लिए सफ़ाईकर्मियों का सम्मान किया, देवी अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा के सामने नमन किया, और “स्मार्ट इंदौर” व्हाट्सऐप हेल्पलाइन की शुरुआत की। यहां भाषण और काम, दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामा।
संदेश जो भीड़ के शोर से परे है
ढोल-नगाड़ों, बैंड और देशभक्ति गीतों के बीच जो कहानी उभर रही थी, वह सहनशक्ति और एकजुटता की थी। साफ़ सड़कें और लहराता झंडा यहां सिर्फ़ दिखावे के प्रतीक नहीं थे, बल्कि यह विश्वास था कि राष्ट्र की ताकत उसकी नैतिकता और नागरिक भागीदारी से भी मापी जाती है।
इंदौर से देश की तस्वीर तक
जैसे-जैसे 79वां स्वतंत्रता दिवस करीब आता है, इंदौर की ये झांकी पूरे देश की आकांक्षाओं का आईना है—ऐसा भारत जो साफ़ हो, भ्रष्टाचार से मुक्त हो और संप्रभुता में अडिग हो। मुख्यमंत्री का “अन्याय अब सहन नहीं होगा” कहना केवल राजनीतिक वाक्य नहीं, बल्कि एक मोड़ का संकेत है जहां आत्मविश्वास अब आदत बन चुका है।
इस स्वतंत्रता दिवस पर, जब तिरंगा लाल किले से लेकर हर घर पर फहराएगा, इंदौर का यह जन-उत्सव याद दिलाएगा कि एक राष्ट्र की असली ताकत उसकी सेनाओं या अर्थव्यवस्था से इतर, उसके नागरिकों के चरित्र में बसती है—और जब यह चरित्र एकता, सम्मान और स्वच्छता के धागों से बुना हो, तब तिरंगे की छांव वाकई अनंत हो जाती है।