Tuesday, August 19, 2025

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बाबा महाकाल की शाही सवारी

आस्था, संस्कृति और सामूहिक चेतना का अद्भुत संगम

प्राचीन नगरी उज्जैन में हाल ही में निकली बाबा महाकाल की शाही सवारी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं थी। यह उस आस्था का विराट स्वरूप था, जिसने सदियों से भारत की आत्मा को संजोए रखा है। जब त्रिकालदर्शी महाकाल छह अलग-अलग रूपों में नगर भ्रमण पर निकले, तो पूरा उज्जैन मानो एक जीवंत मंदिर में बदल गया।

भव्यता में रची-बसी भक्ति

फूलों की वर्षा करने वाला हेलिकॉप्टर, गूंजते नगाड़े, बजती झांझें, सलामी देती सेना और चाँदी से सजी पालकी… यह सब दृश्य जितना राजसी था, उतना ही भक्तिभाव से परिपूर्ण भी। लेकिन इस पूरे आयोजन की असली गरिमा उस भीड़ में थी, जिसमें दूर-दराज़ गाँवों से आए लाखों श्रद्धालु शामिल थे।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सिर्फ़ दर्शक बनकर नहीं, बल्कि दमरू और झांझ बजाकर आमजन की आस्था में भागीदारी निभाई। यह प्रतीक था उस राजनीतिक नेतृत्व का, जो खुद को जनता की संस्कृति से अलग नहीं मानता।

छह रूपों का संदेश

इस सवारी का केंद्रबिंदु रहे बाबा महाकाल के छह विग्रह—चंद्रमौलेश्वर की शांति, हाथी पर सवार महामहेश की गरिमा, गरुड़ रथ पर शिव तांडव की शक्ति, नंदी पर उमा-महेश का संतुलन, होलकर राज्य का मुखारविंद और सप्तधान मुखारविंद। यह केवल झाँकियाँ नहीं थीं, बल्कि जीवन के विविध दर्शन थे—शांत चित्त, अदम्य बल, संतुलित दृष्टि और समृद्धि का संदेश।

संस्कृति की जीवंत धारा

सत्तर से अधिक भजन मंडलियों और आदिवासी-लोक नृत्य दलों की भागीदारी ने इस आयोजन को केवल धार्मिक अनुष्ठान से कहीं आगे पहुँचा दिया। अनूपपुर का ढोलिया गुड्डुंबाजा नृत्य हो या बैगा जनजाति का करमा नृत्य, यह सब दिखाता है कि हमारी लोक परंपराएँ भक्ति का ही विस्तार हैं। एलईडी स्क्रीन और मोबाइल रथों ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी श्रद्धालु इस दिव्य अनुभव से वंचित न रह जाए।

आस्था और जनकल्याण का संगम

डॉ. यादव ने केवल पूजा-अर्चना ही नहीं की, बल्कि प्रसादी वितरण और सामूहिक भोजन में भी सहभागिता की। यह दृश्य बताता है कि जब राजनीति और संस्कृति एक साथ चलें, तो आस्था समाज के लिए कल्याण का साधन बन जाती है।

जीवंत परंपरा, नया संदेश

बाबा महाकाल की शाही सवारी यह याद दिलाती है कि हमारी प्राचीन परंपराएँ केवल इतिहास नहीं, बल्कि वर्तमान की धड़कन भी हैं। वे लोगों को जोड़ती हैं, उन्हें सामूहिक पहचान देती हैं और जीवन को आध्यात्मिक ऊँचाई से भर देती हैं।

उज्जैन की गलियों में उमड़ा यह जनसागर हमें यही सिखाता है कि भारत में पवित्र और सांसारिक जीवन दो अलग धाराएँ नहीं, बल्कि एक ही सामाजिक ताने-बाने के हिस्से हैं। यही एकता हमारी असली शक्ति है।

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