इंजीनियर दिवस पर एक दृष्टि
भोपाल में आयोजित राज्य स्तरीय अभियंता दिवस समारोह में जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि “लोक निर्माण ही लोक कल्याण का आधार है”, तो यह केवल भाषण नहीं था, बल्कि आधुनिक भारत की विकास-यात्रा की गहरी समझ थी। अभियंता दिवस पर सर एम. विश्वेश्वरैया को स्मरण करना मात्र श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि यह स्वीकार करना है कि भारत की नियति अभियंताओं के हाथों से ही आकार लेती है।
नया संकल्प, नई दिशा
मुख्यमंत्री द्वारा मध्यप्रदेश में अभियंता शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की घोषणा इसी दृष्टि का प्रतीक है। यह केवल कौशल सिखाने वाला केंद्र नहीं होगा, बल्कि नवाचार और उत्तरदायित्व का संगम बनेगा। जिस प्रकार विश्वेश्वरैया ने बांध और नहरों से बंजर धरती को उपजाऊ बनाया, उसी प्रकार यह संस्थान ऐसे अभियंताओं की पीढ़ी तैयार करेगा जो आने वाली चुनौतियों का समाधान तकनीक और ईमानदारी से कर सके।
तकनीक का जनकल्याण से मेल
कार्यक्रम में लोक निर्माण सर्वे ऐप और लोक परियोजना प्रबंधन प्रणाली का शुभारंभ यह संकेत है कि अब इंजीनियरिंग केवल ईंट-पत्थर तक सीमित नहीं रहेगी। पारदर्शिता, जवाबदेही और जनभागीदारी इसके मूल सिद्धांत होंगे। यही वह बिंदु है जहाँ तकनीकी दक्षता सामाजिक उत्तरदायित्व से जुड़ती है।
अभियंता: आधुनिक युग के हनुमान
सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री ने अभियंताओं की तुलना हनुमान से की, जो असंभव को संभव कर दिखाते हैं। यह उपमा केवल प्रशंसा नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक परंपरा का स्मरण है जिसमें भारतीय अभियंता मंदिरों से लेकर बांधों तक ऐसे स्मारक खड़े करते आए हैं जो सदियों बाद भी अडिग खड़े हैं। अभियंताओं की यही निष्ठा भारत की असली ताक़त है।
राष्ट्रनिर्माण का शिल्प
जैसा कि लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने कहा, अभियंता केवल पुल और सड़कें नहीं बनाते, बल्कि समाज को जोड़ते हैं। एक टिकाऊ सड़क गाँवों को ही नहीं जोड़ती, बल्कि संस्कृतियों को भी एक सूत्र में पिरोती है। एक बांध केवल जल का भंडार नहीं, बल्कि आशा और विश्वास का स्रोत होता है। यही कारण है कि अभियंत्रण को राष्ट्रनिर्माण का दूसरा नाम कहा जाता है।
ईमानदारी और नैतिकता की आवश्यकता
नए संस्थान को यदि केवल औपचारिकता न बनाकर जीवंत केंद्र बनाया जाए, तो यहाँ से निकलने वाले अभियंता केवल तकनीकी दक्षता ही नहीं, बल्कि विश्वेश्वरैया का नैतिक आदर्श भी आत्मसात करेंगे। जब निर्माण कार्य ईमानदारी से होंगे और जवाबदेही से परखे जाएंगे, तभी जनता का विश्वास मजबूत होगा।
विश्वेश्वरैया का अपने आत्मसम्मान के लिए इस्तीफ़ा देना हमें याद दिलाता है कि पेशेवर गरिमा बिना समझौते के ही टिकती है। आज की पीढ़ी के अभियंताओं को वही साहस और वही ईमानदारी अपनानी होगी।
अभियंता: राष्ट्र की आत्मा
अभियंता दिवस केवल औपचारिकता का दिन नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर होना चाहिए। टूटा हुआ पुल केवल ढांचा नहीं गिराता, बल्कि जनता के विश्वास को भी तोड़ता है। वहीं, टिकाऊ इमारतें, सुरक्षित बांध और मजबूत सड़कें केवल विकास के प्रतीक नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती का भी प्रमाण हैं।
निष्कर्ष
भारत तभी तक मजबूत है जब तक उसके अभियंता ईमानदारी, दूरदृष्टि और साहस से निर्माण करते रहेंगे। विश्वेश्वरैया को केवल भारत रत्न मानना पर्याप्त नहीं, उन्हें हमारे राष्ट्रीय चरित्र का मार्गदर्शक भी मानना होगा। अभियंता यदि राष्ट्रनिर्माण की आत्मा बनकर खड़े हों, तो गणराज्य सदैव स्थिर और न्यायपूर्ण रहेगा।