अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे करते हुए छत्तीसगढ़ आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। कभी केवल खनिज संपदा के कारण पहचाना जाने वाला यह प्रदेश अब संतुलित और सर्वांगीण विकास की ऐसी नई कहानी लिख रहा है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत 2047 के विज़न से प्रतिध्वनित होती है। राज्य का घोषित लक्ष्य है अगले पाँच वर्षों में सकल राज्य घरेलू उत्पाद को दोगुना करना और उस समृद्धि को जनकल्याण व प्रति व्यक्ति आय में रूपांतरित करना।
निवेश का नया केन्द्र
नई औद्योगिक नीति ने छत्तीसगढ़ को निवेशकों के मानचित्र पर प्रमुखता से दर्ज कराया है। अब तक 6.65 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश प्रस्तावित हो चुका है, जिसमें धातु, ऊर्जा और स्टार्टअप जैसे विविध क्षेत्र शामिल हैं। राज्य ने “ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस” से आगे बढ़कर “स्पीड ऑफ डूइंग बिज़नेस” का मॉडल पेश किया है, जिससे देशी-विदेशी कंपनियों का विश्वास बढ़ा है।
कोरबा से लेकर दुर्ग-राजनांदगांव तक औद्योगिक गलियारों का विकास राज्य के औद्योगिक भविष्य की नई तस्वीर गढ़ रहा है। वहीं, देश की पहली लिथियम ब्लॉक नीलामी कराकर छत्तीसगढ़ ने न केवल दूरदर्शिता दिखाई है बल्कि हरित प्रौद्योगिकी और ऊर्जा परिवर्तन के युग में अपनी भूमिका भी सुनिश्चित की है।
ऊर्जा: कोयले से सौर शक्ति तक
देश का दूसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक बनने के बाद छत्तीसगढ़ का लक्ष्य है कि 2030 तक यह प्रथम स्थान हासिल करे। 30,000 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ यह महत्वाकांक्षा व्यावहारिक लगती है। खास बात यह है कि पारंपरिक ऊर्जा के साथ राज्य अब अक्षय ऊर्जा की ओर भी तेज़ी से अग्रसर है। प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना ने छत्तीसगढ़ के गांव-गांव तक छतों पर सौर पैनल पहुंचा दिए हैं। 2027 तक पाँच लाख घरों में सौर ऊर्जा पहुँचाने का लक्ष्य एक हरित क्रांति की दिशा में ठोस कदम है।
कृषि: विकास की धड़कन
औद्योगिक प्रगति के बीच कृषि को भी समान महत्व दिया जा रहा है। कोदो, कुटकी और रागी जैसे मिलेट्स की बढ़ती खेती ने न केवल किसानों को संबल दिया है बल्कि छत्तीसगढ़ को वैश्विक सुपरफूड आंदोलन से जोड़ा है। कृषक उन्नति योजना, सिंचाई पंपों के लिए मुफ्त बिजली और फसल बीमा ने किसानों को आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने का अवसर दिया है। साथ ही, लघु वनोपज आधारित अर्थव्यवस्था ने आदिवासी और वनवासी समाज की आय और अवसरों दोनों को विस्तारित किया है।
मानव विकास और आधारभूत ढाँचा
राज्य नेतृत्व का मानना है कि मानव पूंजी के बिना विकास खोखला है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज हुई है स्कूलों की पहुँच दूरदराज़ क्षेत्रों तक, युवाओं के लिए नए प्रशिक्षण केंद्र, टेली-कनेक्टिविटी से जुड़ी स्वास्थ्य सुविधाएं और आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम।
परिवहन और शहरी ढाँचे में भी बड़ा बदलाव दिख रहा है। सड़कें, रेल, हवाई अड्डे और नई राजधानी क्षेत्र रायपुर, अटल नगर और भिलाई तेजी से एक राज्य कैपिटल रीजन का रूप ले रहे हैं, जो 50 लाख शहरी जनसंख्या को समाहित करने की तैयारी कर रहा है।
सुशासन और सांस्कृतिक आत्मविश्वास
डिजिटल सेवाओं, पेंशन और प्रमाण पत्रों की ऑनलाइन उपलब्धता ने नागरिकों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाई है। ई-गवर्नेंस, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार विरोधी कदमों ने लोकतंत्र में दक्षता को एक नए मानक के रूप में स्थापित किया है।
साथ ही, राज्य अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी नए सिरे से गढ़ रहा है। लोक परंपराओं, हस्तशिल्प और भाषाई धरोहर को संरक्षित करने के साथ ही फिल्म सिटी और सांस्कृतिक पार्क जैसी पहलें छत्तीसगढ़ को सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर में बदल रही हैं। खेल अधोसंरचना का विस्तार युवाओं को ऊर्जा और अवसर प्रदान कर रहा है।
2047 की ओर आत्मविश्वास
लक्ष्य कठिन हैं गरीबी, असमान विकास और उग्रवाद की चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं। लेकिन आज का छत्तीसगढ़ आत्मविश्वास से भरा है। यह केवल राष्ट्रीय विकास में भागीदार नहीं, बल्कि ऊर्जा, कृषि, संस्कृति और सुशासन के क्षेत्रों में अग्रणी बनने की महत्वाकांक्षा रखता है।
पच्चीस वर्षों की यह यात्रा भारत गणराज्य की ही यात्रा का प्रतिबिंब है अभाव से आत्मनिर्भरता की ओर, आशंका से आत्मविश्वास की ओर। यदि छत्तीसगढ़ इसी राह पर अडिग रहा, तो वह केवल “ग्रोथ स्टोरी” नहीं रहेगा, बल्कि विकसित भारत के सपने को साकार करने वाली अग्रणी शक्ति बनेगा।