भोपाल के ऐतिहासिक चौक बाज़ार में इस सप्ताह एक अनोखा संगम देखने को मिला। जो विषय सामान्यतः कर सुधार की तकनीकी चर्चाओं तक सीमित रहता है, वह यहाँ मिठाइयों, मुस्कानों और उत्सव की हलचल में ढल गया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में घोषित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में कटौती को “बचत का मीठा तोहफ़ा” बताते हुए इसे नवरात्रि के शुभ अवसर से जोड़ा।
यह प्रतीकात्मकता महज़ औपचारिक नहीं थी। बाज़ार की गलियों में घूमते हुए, दुकानों पर “जीएसटी बचत उत्सव” के स्टीकर लगाते हुए, देशी वस्त्र ख़रीदते और सार्वजनिक रूप से यूपीआई भुगतान करते हुए मुख्यमंत्री ने यह संदेश दिया कि सुधार सिर्फ़ दफ़्तरों और फ़ाइलों की भाषा नहीं है, बल्कि आम लोगों, व्यापारियों और उद्यमियों के जीवन में उतरने वाली वास्तविकता है।
सुधार की धड़कन
नए प्रावधानों के तहत अब आवश्यक वस्तुएँ पाँच प्रतिशत की श्रेणी में और विलासिता की वस्तुएँ अठारह प्रतिशत पर करयोग्य होंगी। यह सादगी उन छोटे व्यापारियों के लिए राहत है जो पहले अनेक दरों की भूलभुलैया में उलझे रहते थे। साथ ही इससे परिवारों की क्रय शक्ति सीधी बढ़ेगी। मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से महिलाओं की भूमिका रेखांकित की, जिनकी रोज़मर्रा की ख़रीदारियाँ अब सस्ती होंगी और त्योहार का बजट और व्यापक।
खपत बढ़ने से बाज़ार में रौनक लौटेगी। बढ़ी हुई मांग अंततः सरकार की आय को भी मज़बूत करेगी और कल्याणकारी योजनाओं के लिए संसाधन उपलब्ध कराएगी। इस दृष्टि से यह कदम केवल कर छूट नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना से जुड़ा एक मील का पत्थर है।
स्वदेशी का स्वर
चौक बाज़ार में बार-बार उठे “स्वदेशी अपनाओ” के स्वर ने इस सुधार को और गहराई दी। स्वदेशी वस्त्र ख़रीदना, स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देना और “गौरव से कहो, यह स्वदेशी है” जैसे नारे महज़ आर्थिक अपील नहीं थे, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक स्मृति का पुनर्स्मरण भी थे।
बचत और स्वदेशी का यह संगम संदेश देता है कि समृद्धि और गर्व परस्पर जुड़े हुए हैं। कर में बचत का हर रुपया यदि भारतीय उत्पादों पर खर्च होता है, तो वह परिवार के लिए राहत भी है और राष्ट्र की मजबूती में निवेश भी।
मानवीय चेहरा
मुख्यमंत्री के स्वागत में फूल बरसते देखना, मिठाइयाँ बाँटना और व्यापारियों की सहज प्रसन्नता इस सुधार के मानवीय चेहरे को सामने लाती है। अक्सर कर नीति को प्रतिशत और तकनीकी शब्दों में बाँध दिया जाता है। लेकिन जब नीति सीधे बाज़ार की गलियों और नागरिकों के अनुभव में उतरती है, तब उसकी विश्वसनीयता आँकड़ों से कहीं अधिक प्रभावशाली हो जाती है।
विकसित भारत की ओर
आख़िरकार यह संदेश स्पष्ट है जीएसटी सुधार, आयकर में हाल की राहत, डिजिटल भुगतान की व्यापकता और स्वदेशी का आग्रह ये सब मिलकर 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में मज़बूत कड़ियाँ हैं।
निश्चित ही चुनौतियाँ भी हैं। राजकोषीय संतुलन और जनसहज रियायतों के बीच संतुलन साधना आसान नहीं होगा। घरेलू उद्योगों को केवल देशभक्ति के नारों से नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धी माहौल से भी मज़बूती मिलेगी। फिर भी, यदि सुधार नागरिकों का बोझ घटाकर व्यापार को प्रोत्साहित करें, तो वे वास्तव में राष्ट्र निर्माण की नींव बन सकते हैं।
त्योहार की जगमगाती रोशनी और नागरिकों के चेहरों पर बचत की खुशी इस विचार को सशक्त करती है कि सुधार, बचत और स्वदेशी मिलकर केवल नीतिगत निर्णय नहीं, बल्कि लोक उत्सव बन सकते हैं। जीएसटी कटौती भले ही त्योहार का उपहार प्रतीत हो, पर इसका असली मूल्य तभी होगा जब यह भारत के भविष्य को आत्मनिर्भरता और साझा समृद्धि की राह पर आगे बढ़ाए।