छत्तीसगढ़ में बिहान आंदोलन ने वर्षों से ग्रामीण महिलाओं को न केवल गरीबी और बहिष्करण से लड़ने की ताक़त दी है, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामूहिक शक्ति का नया अध्याय भी रचा है। परंतु इस संघर्ष में एक साधारण सी समस्या बार-बार दीवार बनकर सामने आती थी जगह की कमी। महिलाओं की बैठकें कभी किसी आँगन में, कभी पंचायत भवन की भीड़भाड़ में और कभी पड़ोसी के बरामदे की मेहरबानी पर निर्भर रहती थीं। नतीजा यह हुआ कि कई बार अच्छे प्रशिक्षण अधूरे रह गए, सामूहिक निर्णय टलते रहे और कई सपनों की उड़ान बिना पंख के रह गई।
एक नई पहल, एक स्थायी घर
ऐसे समय में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल महतारी सदन एक साधारण दिखने वाली, परंतु बेहद गहरी असर डालने वाली योजना साबित हो रही है। बिहान की दीदियों को जब अपना खुद का सदन मिला, तो यह सिर्फ चार दीवारें और छत नहीं थीं, बल्कि मान्यता, स्थायित्व और सबसे बढ़कर गरिमा थी। यही कारण है कि महिलाएँ इसे “हॉल” नहीं, बल्कि “हमारा घर” कहती हैं एक ऐसा स्थान जहाँ विचारों की नहीं, बल्कि सपनों की बुनियाद रखी जाती है।
सशक्तिकरण की नई परिभाषा
अक्सर विकास परियोजनाएँ यह भूल जाती हैं कि ढाँचा और सुविधा मात्र उपलब्ध कराना सशक्तिकरण नहीं है। पर महतारी सदन स्वयं सशक्तिकरण की मूर्त संरचना है। अब महिलाओं को जगह माँगनी नहीं पड़ती, बल्कि वे अपने हक़ से, अपनी शर्तों पर इकट्ठा होती हैं। जैसा कि एक दीदी ने कहा “अब हम केवल चर्चा ही नहीं, बल्कि सपने भी देख सकते हैं।”
गाँव की नई धड़कन
बिलासपुर ज़िले में अब तक चार महतारी सदन बनकर तैयार हो चुके हैं, और कुल 19 की स्वीकृति दी गई है। इन सदनों की दीवारों के भीतर अब सिलाई-कढ़ाई से लेकर वित्तीय साक्षरता तक की कक्षाएँ चल रही हैं। यह सिर्फ़ कौशल प्रशिक्षण का केंद्र नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और नेतृत्व का विद्यालय है, जहाँ ग्रामीण महिलाएँ अपने भविष्य को नए रूप में गढ़ रही हैं।
राजनीति से परे संदेश
इस पहल का राजनीतिक और सामाजिक संदेश भी गहरा है। सशक्तिकरण केवल भाषणों से नहीं आता, बल्कि मंच और अवसर देने से आता है। महतारी सदन यह स्पष्ट करता है कि महिलाओं का आत्मनिर्भर होना खैरात नहीं, बल्कि उनका अधिकार है। यह स्वतंत्रता को किसी दूर के आदर्श की तरह नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उतारता है “अपना घर, अपने फैसले।”
आगे की राह
बेशक, इमारतें बन जाना अंतिम लक्ष्य नहीं है। इन सदनों को सचमुच परिवर्तन के केंद्र बनाने के लिए निरंतर प्रशिक्षण, बाज़ार से जोड़ाव, वित्तीय सशक्तिकरण और राजनीतिक चेतना का समावेश ज़रूरी होगा। लेकिन नींव रख दी गई है, और यह नींव कंक्रीट के साथ-साथ उम्मीद और आत्मविश्वास की भी है।
बिहान से उजाले तक
यदि बिहान का अर्थ है नई सुबह, तो महतारी सदन उसकी पहली किरण है एक ऐसा घर जो सिर्फ़ ईंट और गारे का नहीं, बल्कि उम्मीद, सामूहिक आकांक्षा और अर्जित आत्मविश्वास का बना है। इसी साधारण सी ग्रामीण वास्तुकला में छिपा है सशक्तिकरण का सबसे गहरा अर्थ।