Friday, October 4, 2024

Latest Posts

मृत्यु भोज देना या उसमें भाग लेना दंडनीय अपराध है!-जाना पड़ सकता है जेल! 

राजस्थान मृत्यु भोज निवारण अधिनियम 1960 के तहत मृत्यु भोज कानून दंडनीय है
पारिवारिक सदस्य की मृत्यु पर 13 दिवसीय शोक पर मृत्यु भोज कुरीति/रीति या फिर धार्मिक संस्कार इसपर बहस छिड़ी-राष्ट्रीय स्तरपर इसका समाधान होना ज़रूरी-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर दुनियां में भारत ही एक ऐसा देश है जहां हजारों समाज, लाखों जातियां, उपजातियां धर्म व आध्यात्मिक आस्था की जड़ कहा जाता रहा है, जिसकी गिनती विदेशो में भारतीय खूबसूरती की विशेषताओं में से एक है। कई सैलानी इस अनोखी व्यवस्था को देखनें ही भारत यात्रा पर आते हैं और कहते हैं काबिल-ए-तारीफ़! इसी कारण ही भारत धर्मनिरपेक्ष देश की ताक़त से प्रसिद्ध है। भारतीय रीति रिवाज को हर समाज स्तर पर अलग अलग रूप से लागू किया जाता रहा है,परंतु बहुत सीऋतियां और रिवाज ऐसे हैं जो करीब करीब हर समाज जाति में कॉमन है, उन्हें में से एक है परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उस परिवार में 13 दिवसीय शोक मनाया जाता है तथा अंतिम दिन को, 13 वीं या 12 वीं दिन  के रूप में अंतिम दिन मृत्यु भोज दिया जाता है, जिसे समाज स्तर व पारिवारिक व रिश्तेदारों के लोग शामिल होते हैं। परंतु समय के बदलते परिपेक्ष में आजकल समय अभाव के कारण समाज में अपने-अपने समय अनुसार मृत्यु भोज दिया जाता है, तो अनेक समाजों में यह मृत्यु भोज केवल पारिवारिक व रिश्तेदारी तक सीमित कर दिया गया है, जो कि इस प्रकार के नियम समझो कि पंचायत द्वारा ही बनाए गए हैं, जो मेरा मानना है कि काफी हद तक उचित भी हैं। हमारी राइस सिटी गोंदिया नगरी के हमारे पूरे समाज के अध्यक्ष श्री नारायण सच्चानंद चांदवानी सर जी से इस मृत्यु भोज के विषय पर मेरी लंबी चर्चा हुई तो, उन्होंने कहा हमारे समाज में मृत्यु भोज प्रतिबंधित है परंतु समाज के लोग अपने परिवार और रिश्तेदारों तक सीमित रूप से मृत्यु भोज की रस्म करते रहते हैं। यह चर्चा आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि मुझे आज 17 मई 2024 को एक महिला ने डिस्पोजल शॉप पर बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है, वह उसकी 13 वीं में मृत्यु भोज कर रहे हैं। पूरे 13 दिवसीय शोक में एक लाख रुपए से अधिक खर्च आ गया है, व मृत्यु भोज पर भी करीब 40-50 हज़ार रुपए खर्च होगा। उन्होंने कहा कि वह यह मृत्यु भोज नहीं करना चाहती है परंतु कुछ समाज के लोगों ने कहा इससे समाज वाले उंगली उठाएंगे, बदनाम करेंगे, व सामाजिक प्रतिष्ठा कम होगी! इसलिए मैं यह सब कर रही हूं। बस! इसलिए मैंने आज इस विषयपर आर्टिकल लिखनेकी सोचा औरमैंने फिर इस पर रिसर्च शुरू की तो, मुझे राजस्थान मृत्यु भोज निवारण अधिनियम 1960 मिला, जिसके तहत मृत्यु भोज देना या उसमें भाग लेना दंडनीय अपराध है, जेल जाना पड़ सकता है। उसमें 1 साल की सजा वह 1000 रुपए जुर्माना की सजा है । दुसरा 13 दिसंबर 2023 तारीख़ की राजस्थान पुलिस की एक सोशल मीडिया पर पोस्ट मिली जिसमें लिखा था, मृत्यु भोज करने और उसमें शामिल होना कानूनं दंडनीय अपराध है। मानवीय दृष्टिकोण से भी यह आयोजन अनुचित है, इसलिए आओ मिलकर इस कुरीति को समाज के से दूर करें, इसका विरोध करे।चूंकि राजस्थान मृत्यु भोज निवारण अधिनियम 1960 के तहत मृत्यु भोज कानून दंडनीय अपराध है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे पारिवारिक सदस्य की मृत्यु पर 13 दिवसीय शौक पर मृत्यु भोज को कुरीति/रीति/धार्मिक संस्कार पर बस छिड़ी। राष्ट्रीय स्तरपर इसका समाधान होना जरूरी है।
साथियों बात अगर हम मृत्यु भोज की करें तो, हिंदू परिवारों में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए परिजन अंतिम संस्कार के बाद विधि विधान से तेरह दिन पर तेरहवीं के रूप में मृत्यु भोज रखते हैं, मगर राजस्थान पुलिस का फरमान देख लगता है कि यह लोगों का अधिकार नहीं बल्कि अपराध है। राजस्थान पुलिस ने 13 दिसंबर की सुबह सोशल साइट एक्स पर पोस्ट किया था – मृत्यु भोज करना और उसमें शामिल होना कानूनन दंडनीय है। मानवीय दृष्टिकोण से भी यह आयोजन अनुचित है,तो क्या किसी को भोज दे ही नहीं?असल में मृत्यु भोज ऐक्ट आज का नहीं है, यह 1960 से है। इसमें साफ लिखा है कि मृत्यु भोज देना या उसमें भाग लेना दंडनीय अपराध है। सजा के रूप में एक साल तक का या एक हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसमें साफ है कि धार्मिक संस्कार के तहत रखे गए भोज में सौ से ज्यादा लोगों की संख्या नहीं होनीचाहिए। एक्ट बने इतने साल बीत गए मगर हकीकत यह है कि लोग इसके बारे में जानते भी नहीं। राजस्थान पुलिस के ट्वीट पर भी कई लोगों की प्रतिक्रिया थी कि क्या ऐसा भी कोईकानून है। ऐसा कहने वाले भी कम नहीं थे कि यह उनका निजी विषय है। एक ने एक्स पर लिखा-ऐसे हिंदू विरोधी क़ानून बंद करें। यह हिंदू धर्म के लिए ठीक नहीं। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती। हर इंसान अपनी हैसियत के हिसाब से ही करता है। तो कुछ लोगों ने इसके समर्थन में भी पोस्ट किया। एक ने लिखा-हमारे यूपी में भी ऐसा कानून होना चाहिए! मरने के बाद धर्म संकट में डालकर लूटने वालों की दुकानों पर ताला लगना चाहिए!राजस्थान में कुरीति बन चुकी है मृत्यु भोज?लोगों के तर्क से बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या शोकाकुल परिजनों को मृत्यु भोज के लिए धर्म संकट में डाला जाता है? राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ने सबसे पहले पुलिस को ट्रोल करने वालों को जवाब दिया। वह बताते हैं-ट्रोल करने वालों में ज्यादातर लोग प्रदेश के बाहर के हैं। शायद इन्हें नहीं पता होगा कि राजस्थान में नुकता यानी मृत्युभोज कितनी बड़ी कुरीति रही है। राजस्थान में शादियों में ढाई-तीन हजार लोगों को आमंत्रित किया जाता है और मृत्युभोज में भी इतनी ही तादाद में भोज कराने का दबाव रहता है। बेशक खाने के आइटम शादी के मुकाबले थोड़े कम होते हैं। यहां तक कि अगर घर में किसी युवा शख्स की मौत होती है तो भी इतना बड़ा भोज करने का दबाव रहता है। यह आर्थिक रूप से कमजोर परिवार को भावनात्मक और आर्थिक रूप से बहुत कमजोर कर देता है। कई बार तो कर्ज लेना पड़ जाता है। पुलिस की कानूनी बंदिश यह कहती है कि आप सौ-सवा सौ से ज्यादा लोगों को भोज न दें।
साथियों बात अगर हम राजस्थान मृत्यु भोज निवारण अधिनियम 1960 की मुख्य धाराओं की करें तो, परिभाषा – इस अधिनियम में, जब तक कि विषय या संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-(ए)मृत्यु भोज का अर्थ है किसी व्यक्ति के निधन के अवसर पर या उसके संबंध में किसी भी अंतराल पर आयोजित या दी जाने वाली दावत और इसमें एक नुक्ता, एक मोसर और एक चहल्लुम शामिल है,और(बी) मृत्यु भोज आयोजित करने या देने’ में तैयार या बिना तैयार भोजन की वस्तुओं का वितरण शामिल है, लेकिन इसमें धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष संस्कारों के पालन में परिवार के लोगों या पुरोहित वर्ग के व्यक्तियों या फागीरों को खाना खिलाना शामिल नहीं है, जो कि इससे अधिक नहीं है। कुल मिलाकर सौ व्यक्तियों की संख्या।(3) मृत्यु भोज का निषेध- राज्य में कोई भी व्यक्ति मृत्यु भोज आयोजित नहीं करेगा, न देगा, न शामिल होगा, न ही भाग लेगा।(4) धारा 3 के उल्लंघन के लिए सजा- जो कोई भी धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है या ऐसे किसी भी उल्लंघन को करने के लिए उकसाता है, उकसाता है या सहायता करता है, उसे एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या एक हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, या दोनों के साथ।(5) निषेधाज्ञा जारी करने की शक्ति- यदि धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान लेने में सक्षम न्यायालय इस बात से संतुष्ट है कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए मृत्यु भोज की व्यवस्था की गई है या होने वाली है या दी जाने वाली है तो ऐसी अदालत आयोजन पर रोक लगाने के लिए निषेधाज्ञा जारी कर सकती है या ऐसे मृत्यु भोज देना (6) धारा 5 के तहत निषेधाज्ञा की अवज्ञा के लिए सजा- जो कोई भी, यह जानते हुए कि धारा 5 के तहत एक आदेश जारी किया गया है, ऐसे निषेधाज्ञा की अवज्ञा करेगा, उसे एक अवधि के लिए कारावास, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, जो एक हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जाएगा।इस अधिनियम की धारा 5 के तहत जारी हस्ताक्षर के किसी भी उल्लंघन पर एक वर्ष या पांच रुपये तक की सजा का प्रावधान किया गया है।1000/ – या दोनों (7) सरंपच आदि जानकारी देने के लिए बाध्य
(1) राजस्थान पंचायतअधिनियम 1953 (1953 का राजस्थान अधिनियम 21) के तहत स्थापित ग्राम पंचायत के सरपंच और प्रत्येक पंच और प्रत्येक पटवारी और लंबरदार धारा 4 या के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान लेने के लिए सक्षम निकटतम मजिस्ट्रेट को तुरंत सूचित करने के लिए बाध्य होंगे। धारा 6 कोई भी जानकारी जो उसके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमा के भीतर ऐसे अपराध को करने या करने के इरादे के संबंध में उसके पास हो।(2) ऐसे किसी भी सरपंच, पंच, पटवारी या लंबरदार को उप-धारा (1) के तहत आवश्यक जानकारी देने में विफल रहने पर तीन महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।यह धारा सरपंच और प्रत्येक पंच या ग्राम पंचायत, पटवारी और लंबरदार के लिए धारा 6 में से 5 के तहत अपराध की जानकारी निकटतम प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को देना अनिवार्य बनाती है, यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो उसे दंडित भी किया जा सकता है और इस धारा के तहत दोषी ठहराए जाने पर 3 महीने तक की सजा या जुर्माना या दोनों।(8) पैसा उधार लेने या उधार देने पर रोक(1) कोई भी व्यक्ति मृत्यु भोज आयोजित करने या देने के उद्देश्य से किसी अन्य व्यक्ति से धन या सामग्री उधार नहीं लेगा या उधार नहीं देगा।(2)इस जानकारी के साथ या यह विश्वास करने का कारण होने पर कि दिए गए ऋण का उपयोग मृत्यु भोज रखने या देने के उद्देश्य से किया जाएगा, दिए गए ऋण के पुनर्भुगतान के लिए प्रत्येक समझौता शून्य होगा और कानून की अदालत में लागू नहीं किया जाएगा।(9) अपराध का क्षेत्राधिकार और संज्ञान- प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के अलावा कोई भी अदालत इस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी, या उस पर मुकदमा नहीं चलाएगी।(10) अभियोजन के लिए परिसीमा- कोई भी अदालत इस अधिनियम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान उस तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के बाद नहीं लेगी जिस दिन अपराध होने का आरोप लगाया गया है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मृत्यु भोज देना या उसमें भाग लेना दंडनीय अपराध है!- जाना पड़ सकता है जेल!राजस्थान मृत्यु भोज निवारण अधिनियम 1960 के तहत मृत्यु भोज कानून दंडनीय है।पारिवारिक सदस्य की मृत्यु पर 13 दिवसीय शोक पर मृत्यु भोज को कुरिति/रीति या धार्मिक संस्कार इसपर बहस छिड़ी-राष्ट्रीय स्तरपर इसका समाधान होना ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Latest Posts

spot_imgspot_img

Don't Miss

Stay in touch

To be updated with all the latest news, offers and special announcements.