बीजेपी नेता पी.सी. जॉर्ज की गिरफ्तारी कोई चौंकाने वाली खबर नहीं थी। उनकी जमानत याचिका पहले ही निचली अदालत और फिर केरल हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई थी। कारण? एक बार फिर भड़काऊ बयानबाजी—इस बार एक टेलीविजन चर्चा के दौरान, जब उन्होंने मुसलमानों को आतंकवादियों से जोड़कर पाकिस्तान जाने की सलाह दी। यह कोई पहला मामला नहीं था। जॉर्ज का अतीत संप्रदायिक बयानों से भरा हुआ है, और यह हालिया विवाद सिर्फ एक और कड़ी थी।
न्यायपालिका का सख्त रुख
केरल हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया, यह देखते हुए कि उन्होंने पहले भी ऐसे बयान न देने का वादा तोड़ा था। इस बार भी, उन्होंने ‘ज़ुबान फिसलने’ का बहाना बनाया, लेकिन जो लोग इस चर्चा को देख रहे थे, वे समझ गए थे कि यह एक सुविचारित और जानबूझकर दिया गया बयान था।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा से घृणा तक
पी.सी. जॉर्ज का सांप्रदायिक राजनीति की ओर झुकाव कोई संयोग नहीं था। पहले वे केरल कांग्रेस के सदस्य थे और कई बार विधायक रह चुके थे। लेकिन उनका सर्वोच्च पद ‘मुख्य सचेतक’ (Chief Whip) का रहा। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उनकी उपलब्धियों से कहीं अधिक थीं।
तब उनके चुनाव क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय ने उन्हें नकार दिया। इस हार के बाद आत्मनिरीक्षण करने के बजाय, उन्होंने संप्रदायिकता का सहारा लिया। बीजेपी में शामिल होने के बाद, उनकी इस्लामोफोबिक बयानबाजी और अधिक बढ़ गई। हालांकि, पार्टी के अंदर भी उनका स्वागत संदेह के साथ हुआ, लेकिन एक बार प्रवेश मिल जाने के बाद, उन्होंने इस मंच को घृणा फैलाने के लिए खुला मंच मान लिया।
सिर्फ पी.सी. जॉर्ज नहीं, बल्कि एक बढ़ती प्रवृत्ति
पी.सी. जॉर्ज एक बड़ी समस्या के सिर्फ एक लक्षण हैं। हेट स्पीच (Hate Speech) अब भारतीय राजनीति और सार्वजनिक विमर्श का एक खतरनाक चलन बन गया है।
- यूट्यूब और सोशल मीडिया पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ ज़हर उगलते वीडियो भरे पड़े हैं।
- सम्मानित धार्मिक हस्तियां भी हिंसा के खुले आह्वान कर रही हैं।
- एक शंकराचार्य तक ने छत्तीसगढ़ में ‘जातीय सफाई अभियान’ की धमकी दी।
अगर प्रशासन ने संविधान की रक्षा को गंभीरता से लिया होता, तो ऐसे उकसाने वाले लोग अब तक जेल में होते।
स्वतंत्रता बनाम नफरत: संविधान क्या कहता है?
संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन हर भारतीय को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार भी सुनिश्चित करता है। चुनिंदा आक्रोश और राजनीतिक लाभ के आधार पर कानून लागू नहीं किया जा सकता।
एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में नफरत के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। प्रशासन को ऐसे मामलों पर त्वरित और कठोर कार्रवाई करनी होगी। पी.सी. जॉर्ज जैसे लोगों को सिर्फ जेल नहीं भेजना चाहिए, बल्कि समाज में नफरत की राजनीति को भी जड़ से खत्म करना होगा।