यदि भारत 8% की विकास दर बनाए रखता है, तो नौ वर्षों में इसकी जीडीपी दोगुनी होकर $8 ट्रिलियन हो जाएगी। लेकिन अगर यह दर 5% तक सीमित रहती है, तो 2034 तक भारत की जीडीपी केवल $6.2 ट्रिलियन होगी। यह अंतर $1.8 ट्रिलियन का है, जिसका सीधा असर प्रति व्यक्ति आय और सरकार के राजस्व पर पड़ेगा।
भारत की आर्थिक चुनौतियाँ
हालांकि भारत 6.5% की दर से दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, फिर भी कई ढांचागत बाधाएँ हैं जो 8% की निरंतर वृद्धि को मुश्किल बनाती हैं:
- अनौपचारिक क्षेत्र में श्रमिकों की अधिकता – 85-90% भारतीय श्रमिक अब भी असंगठित क्षेत्र में हैं, जहाँ कौशल, उत्पादकता और वेतन कम हैं।
- शहरीकरण की धीमी गति – भारत की 65% आबादी अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जबकि विकसित देशों में शहरीकरण आर्थिक वृद्धि का महत्वपूर्ण कारक रहा है।
- कृषि पर अत्यधिक निर्भरता – अब भी 46% भारतीय श्रमिकों की आजीविका मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह प्रतिशत बहुत कम है।
क्या बजट 2025-26 इस दिशा में मदद करेगा?
नवीनतम बजट को राजकोषीय रूप से जिम्मेदार और विकासोन्मुखी माना जा सकता है:
- वित्तीय अनुशासन बनाए रखते हुए राजकोषीय घाटे को 4.8% से घटाकर 4.4% किया गया है।
- पूँजीगत व्यय (capital expenditure) लगातार तीसरे वर्ष रिकॉर्ड स्तर पर है।
- राजस्व का 53% हिस्सा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्थानांतरित किया जाएगा, जिससे विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- आयकर छूट सीमा बढ़ाकर 12 लाख रुपये वार्षिक कर दी गई है, जिससे मध्यम वर्ग को राहत मिलेगी।
हालाँकि, ये सुधार दीर्घकालिक विकास के लिए अपर्याप्त हैं।
चीन से क्या सीख सकता है भारत?
चीन ने लगभग तीन दशकों तक 8% से अधिक की विकास दर बनाए रखी और अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक शक्ति बना दिया।
भारत भी ऐसा कर सकता है, लेकिन इसके लिए निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:
- नीति और क्रियान्वयन में सुधार – चीन की सफलता का कारण उसका संगठित प्रशासन और व्यावहारिक नेतृत्व था। भारत को भी राजनीतिक निर्णयों में अधिक विशेषज्ञता और दक्षता लानी होगी।
- शिक्षा और कौशल विकास – चीन ने अपनी श्रमशक्ति को कुशल बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया। भारत को भी तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण को प्राथमिकता देनी होगी।
- स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार – चीन ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त किया, जिससे श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ी। भारत को भी अपनी स्वास्थ्य नीति में सुधार करना होगा।
- भूमि और श्रम बाजार सुधार – चीन ने भूमि अधिग्रहण और श्रम सुधारों में सरल और व्यावहारिक नीतियाँ अपनाईं। भारत में भी कड़े श्रम कानूनों में लचीलापन लाना होगा ताकि उद्योगों का विस्तार हो सके।
- स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाना – चीन में स्थानीय सरकारें सार्वजनिक व्यय का 50% नियंत्रित करती हैं, जिससे बुनियादी ढाँचे और उद्योगों का तेजी से विकास हुआ। भारत में भी राज्यों और नगरपालिकाओं को अधिक वित्तीय स्वायत्तता देनी होगी।
- मूलभूत उद्योगों से उन्नत तकनीकों तक – चीन ने अपने विकास की शुरुआत सस्ते उत्पादों (साइकिल, घड़ियाँ, कपड़े) से की और धीरे-धीरे उच्च तकनीक (स्मार्टफोन, सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, AI) में आगे बढ़ा। भारत को भी मूलभूत विनिर्माण (manufacturing) में निवेश करना होगा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनना होगा।
निष्कर्ष
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था विकास के लिए बाधा नहीं है, बशर्ते कि सही नीतियाँ और निष्पादन हों। चीन की सफलता का कारण केवल अधिनायकवाद (autocracy) नहीं था, बल्कि उसकी रणनीतिक योजना और कार्यान्वयन क्षमता थी। भारत में बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और नीतिगत सुधारों पर ध्यान देकर चीन की तरह उच्च आर्थिक वृद्धि प्राप्त की जा सकती है।
यदि भारत 8% की निरंतर वृद्धि दर बनाए रखता है, तो 2050 तक यह एक विकसित राष्ट्र बन सकता है। लेकिन इसके लिए ‘बड़ी योजनाओं’ के बजाय, ‘व्यावहारिक नीतियों’ और ‘संगठित क्रियान्वयन’ की आवश्यकता होगी।