Tuesday, July 29, 2025

Latest Posts

क्या भारत का चुनाव आयोग भरोसे की कसौटी पर खरा उतर रहा है?

भारतीय लोकतंत्र का सबसे चमकदार रत्न उसका चुनावी तंत्र रहा है। यह वह प्रणाली है जिसने विश्व को बार-बार यह दिखाया कि करोड़ों लोगों वाला देश भी मतपेटी के सहारे सत्ता परिवर्तन की स्वस्थ प्रक्रिया में विश्वास रखता है। लेकिन अब, जब बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर सवाल उठ रहे हैं, तो यह भरोसा दरकता सा प्रतीत होता है।

❖ सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी: न्याय की प्रतीक्षा या लोकतंत्र की थकावट?

सर्वोच्च न्यायालय लोकतंत्र का प्रहरी है। किंतु जब उसने बिहार के मतदाता सूची विवाद पर अंतिम निर्णय को टाल दिया, तो न्याय की प्रतीक्षा अधर में लटक गई। यह टालमटोल न सिर्फ याचिकाकर्ताओं के लिए, बल्कि उन लाखों मतदाताओं के लिए भी निराशाजनक है जिनकी नागरिकता को संदेह के घेरे में डाला जा रहा है।

❖ आयोग की जिद या ज़िम्मेदारी से पलायन?

चुनाव आयोग ने आधार, राशन कार्ड, व अन्य सरकारी दस्तावेज़ों को मतदाता पहचान के लिए खारिज कर दिया है। तर्क यह दिया गया कि यह दस्तावेज़ नकली हो सकते हैं। लेकिन क्या किसी दस्तावेज़ की संभावित नकल उसकी उपयोगिता को सिरे से नकार देती है? या फिर यह एक बहाने की चादर है जिसके पीछे कोई गहरी योजना छिपी है? जब आयोग स्वयं नागरिकता की जांच करने लगे, तो वह अपने संवैधानिक दायरे से बाहर जा रहा होता है।

❖ ज़मीन पर सच्चाई: अधिकारियों पर दबाव, पत्रकारों पर मुकदमे

मीडिया रिपोर्टों ने यह उजागर किया है कि बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) समय सीमा पूरी करने के दबाव में प्रक्रिया का पालन करने में चूक कर रहे हैं। वहीं, जो पत्रकार इस गड़बड़ी को सामने लाते हैं, उन्हें एफआईआर का डर दिखाया जाता है। यह माहौल पारदर्शिता का नहीं, बल्कि संस्थागत डर का निर्माण करता है।

❖ क्या चुनाव आयोग अब सत्ता के निकटस्थ हो चला है?

जब विपक्ष की शिकायतों को अनसुना किया जाए, संवाद की प्रक्रिया को दरकिनार किया जाए और लाखों नाम बिना पर्याप्त जाँच के मतदाता सूची से हटा दिए जाएं — तब प्रश्न यह नहीं रह जाता कि चुनाव निष्पक्ष होंगे या नहीं, बल्कि यह हो जाता है कि लोकतंत्र की आत्मा अभी जीवित है या नहीं

❖ सिर्फ निष्पक्ष होना पर्याप्त नहीं

लोकतंत्र की खूबसूरती यह नहीं कि प्रक्रिया सिर्फ लिखित रूप से निष्पक्ष हो, बल्कि यह कि हर नागरिक को यह दिखाई दे और महसूस हो कि तंत्र सभी के साथ समान व्यवहार कर रहा है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता सिर्फ कानूनी दलील नहीं, बल्कि नैतिक ज़रूरत भी है।


🔻 निष्कर्ष: यदि विश्वास छला गया, तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा

भारत को यदि लोकतंत्र का वैश्विक उदाहरण बने रहना है, तो चुनाव आयोग को निष्पक्षता के साथ-साथ सार्वजनिक विश्वास भी अर्जित करना होगा। पारदर्शिता, संवाद और संवेदनशीलता के बिना चुनाव केवल आंकड़ों की कवायद बनकर रह जाएंगे। आज यदि मतदाता अपनी पहचान के लिए संघर्ष करता है, तो कल वह लोकतंत्र से मुंह मोड़ने लगेगा।

यह चेतावनी नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक आह्वान है — भारत के संविधान, उसके नागरिकों और उसके भविष्य के नाम।

Latest Posts

spot_imgspot_img

Don't Miss

Stay in touch

To be updated with all the latest news, offers and special announcements.