Tuesday, August 5, 2025

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उद्यम, धैर्य और सशक्तिकरण: आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत की प्रेरक यात्रा

मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी ज़िले के एकटाकन्हार गाँव के अजीत और उषा हिडको की कहानी किसी सामान्य ग्रामीण उद्यम की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता के अदम्य साहस और सरकारी योजना के सफल समागम की मिसाल है। यह गाथा बताती है कि यदि नीति और नागरिक का संकल्प एक दिशा में अग्रसर हो, तो आत्मनिर्भरता केवल एक नारा नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत बन सकती है।

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना (PMEGP) के अंतर्गत मिली सहायता से हिडको दंपति ने सौ देसी चूजों से अपने मुर्गीपालन व्यवसाय की शुरुआत की। यह निर्णय महज जीविका का साधन नहीं था, बल्कि कृषि मज़दूरी के असुरक्षित दायरे से निकलने की एक साहसिक पहल थी। ₹5 लाख की बैंक ऋण राशि, जिसमें 35% अनुदान शामिल था, ने उनके हौसले को वित्तीय रूप दिया। साधारण कमरे से शुरू हुआ यह प्रयास आज हर महीने हज़ार से अधिक मुर्गियों का उत्पादन कर रहा है और ₹20,000 से ₹40,000 की नियमित आमदनी दे रहा है।

इस परिवर्तन की नींव केवल आर्थिक नहीं, बल्कि बौद्धिक और मानसिक स्तर पर भी रखी गई। उषा हिडको ने कामधेनु विश्वविद्यालय एवं कृषि प्रशिक्षण संस्थानों से औपचारिक प्रशिक्षण लेकर न सिर्फ तकनीकी दक्षता अर्जित की, बल्कि प्रबंधन और विपणन के उन पहलुओं को भी आत्मसात किया, जो उनके पूर्ववर्ती अनुभव से परे थे। यह दर्शाता है कि ग्रामीण प्रतिभा अवसर और मार्गदर्शन मिलने पर किसी भी चुनौती को मात दे सकती है।

हिडको परिवार की यह कहानी कोई अपवाद नहीं है, बल्कि यह उन संभावनाओं की प्रतीक है जो नीति, स्थानीय प्रशासन और नागरिक भागीदारी के संयुक्त प्रयास से जन्म लेती हैं। कलेक्टर श्रीमती तुलिका प्रजापति के नेतृत्व में जिला प्रशासन ने न केवल मार्गदर्शन दिया, बल्कि यह सुनिश्चित किया कि यह पहल एक पुनरुत्पादनीय मॉडल के रूप में उभरे। उनके सहयोग से यह कहानी सिर्फ एक सफल प्रयोग नहीं रही, बल्कि रूरल एजेंसी का प्रेरक संदेश बन गई।

इस आर्थिक बदलाव के समानांतर, उषा हिडको का “बिहान योजना” में ‘पशु सखी’ के रूप में सक्रिय योगदान एक और सशक्त क्रांति की ओर संकेत करता है। यह भूमिका उन्हें केवल अतिरिक्त आय का स्रोत नहीं देती, बल्कि स्थानीय महिला सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव की वाहक भी बनाती है। आज वे न केवल अपने परिवार की अर्थव्यवस्था संभाल रही हैं, बल्कि अपने समुदाय की सोच और संरचना को भी बदल रही हैं।

इस पूरी यात्रा का सबसे गहरा संदेश यही है: सरकारी योजनाएँ तभी सार्थक होती हैं जब लाभार्थियों के भीतर आत्मबल और दृष्टि हो। हिडको दंपति ने यह सिद्ध किया कि परिवर्तन किसी भी सुविधा से अधिक, एक मनोबल और दृष्टिकोण का विषय है।

यह कहानी संयोग नहीं, बल्कि एक सोच-समझकर चुनी गई राह का परिणाम है—जहाँ नीति का उद्देश्य और मानवीय संभावनाएँ एक साथ मिलकर न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक और मानसिक परिवर्तन का आधार बनती हैं। यह केवल एक परिवार की सफलता नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास की नई परिभाषा है—जो आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करती है।

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