छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव ज़िले के गटापार खुर्द गांव में, चुपचाप एक हरित क्रांति अंकुरित हो रही है। इस बदलाव के केंद्र में हैं प्रगतिशील किसान श्री सुरेश सिन्हा, जिन्होंने परंपरागत धान की खेती से हटकर बहु–फसली बागवानी को अपनाकर अपनी ज़मीन, आमदनी और जीवन—तीनों को नई दिशा दी है।
यह बदलाव न केवल साहसी था बल्कि सोची–समझी रणनीति का परिणाम भी। पानी–बहुल धान की जगह उन्होंने बाज़ार–मुखी सब्ज़ियों की खेती शुरू की। 5.5 एकड़ में लगाए गए खीरे ने अभी तक ₹2.50 लाख की आमदनी दिला दी है—और तुड़ाई अब भी जारी है। यह ताज़ा उत्पादन केवल स्थानीय मंडियों तक सीमित नहीं, बल्कि प्रयागराज, ओडिशा और कोलकाता जैसे बड़े थोक बाज़ारों तक पहुँच रहा है, जहाँ ₹15 से ₹20 किलो के दाम पर बिक्री उनके मुनाफ़े को और मज़बूत कर रही है।
लेकिन यह तो उनकी खेती की सफलता का सिर्फ़ एक पन्ना है। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर उन्होंने एक पॉलीहाउस तैयार किया—जहाँ नियंत्रित वातावरण में सब्ज़ियों की खेती संभव हुई। इसी के चलते उन्हें कैप्सिकम से ₹3.50 लाख की आमदनी हुई। करीब ₹34 लाख लागत वाले इस ढांचे को साकार करने में ₹17 लाख की सरकारी सब्सिडी ने अहम भूमिका निभाई। इसके साथ ही पैकहाउस, भंडारण और आधुनिक स्प्रे मशीन जैसी सुविधाएँ—जिन्हें बागवानी एवं कृषि मिशन के तहत सब्सिडी मिली—ने उनके उत्पादन और विपणन क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया।
सिन्हा का प्रयोगशील दृष्टिकोण अल्पकालिक नहीं है। पिछले साल 7 एकड़ में की गई टमाटर की खेती ने उन्हें ₹3 लाख का लाभ दिया। इस बार, उसी भूमि पर सिंजेंटा कमल मायला किस्म के टमाटर लगाए गए हैं, जो प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत संरक्षित हैं—यह उनकी जोखिम प्रबंधन क्षमता का प्रमाण है। अपनी 15 एकड़ ज़मीन में उन्होंने संतुलन कायम रखा है—8 एकड़ पर धान की परंपरा और 7 एकड़ पर उच्च–मूल्य वाली सब्ज़ियाँ जो सीधा मुनाफ़ा देती हैं।
इस सफलता ने उनकी पारिवारिक ज़िंदगी को भी संवारा है—बच्चों की पढ़ाई मज़बूत हुई, बेटी की शादी गरिमा से संपन्न हुई—यह दिखाता है कि ग्रामीण उद्यमिता केवल किसान ही नहीं, पूरे परिवार को उन्नति के पथ पर ले जा सकती है।
सुरेश सिन्हा की कहानी भारत के किसानों के लिए एक प्रेरक संदेश है—कि सोच–समझकर फसलों में विविधता लाना, आधुनिक तकनीक अपनाना और किसान–हितैषी नीतियों का पूरा लाभ उठाना, आत्मनिर्भर और लाभकारी खेती की ओर ले जाता है। जहाँ परंपरा संभावनाओं को बाँधती है, वहाँ नवाचार उन बंधनों को तोड़ देता है। और जहाँ अनिश्चितता का कोहरा छाया हो, वहाँ दूरदर्शिता और नीति की रोशनी राह दिखाती है।
भारत के खाद्य–अर्थतंत्र में वही किसान आगे बढ़ेगा, जो विज्ञान, बाज़ार की समझ और सरकारी सहयोग के साथ साहस दिखाएगा—ताकि उसकी मिट्टी केवल अन्न ही नहीं, बल्कि स्थायी समृद्धि भी उपजाए।





