भारत आज अमृत काल के उस सुनहरे पड़ाव पर खड़ा है, जहाँ इतिहास और भविष्य एक नई चेतना में मिलते हैं। इस दौर में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक जन–आंदोलन बन चुका है एक ऐसा आंदोलन जो अदृश्य सूत्रों से हमें एक मज़बूत गणराज्य के रूप में जोड़ता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरक दृष्टि और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सशक्त समर्थन के साथ, यह पहल अब केवल झंडा फहराने तक सीमित नहीं रही। यह हमसे केवल एक रस्म निभाने की नहीं, बल्कि तिरंगे में निहित मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात करने की मांग करती है। भगवा, सफ़ेद और हरे रंग का यह संगम हमारे त्याग, संघर्ष और सपनों की जीवंत गाथा है स्वतंत्रता संग्राम का गीत और लोकतांत्रिक यात्रा का मार्गदर्शक।
इस वर्ष का अभियान तीन चरणों में रचा गया है जहाँ प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर सक्रिय भागीदारी पर जोर है। तिरंगे से सजी रंगोली और जगमगाती इमारतें, सीमा पर तैनात सैनिकों को भेजी गई राखियाँ और पत्र, सांस्कृतिक झाँकियाँ, प्रतियोगिताएँ, स्कूल–कॉलेज में प्रश्नोत्तरी, और सोशल मीडिया पर रचनात्मक पोस्ट—हर पहल नागरिक चेतना और सामूहिक गर्व को जागृत करने का साधन है। यह महज़ आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति की शिक्षा है, जो हमें तिरंगे को त्याग, एकता और अटूट आशा का सजीव प्रतीक मानने का अवसर देती है।
‘हर घर तिरंगा’ हमें यह याद दिलाता है कि देश से हमारा रिश्ता केवल जन्मसिद्ध अधिकार का नहीं, बल्कि सक्रिय जिम्मेदारी का है। तिरंगा, जिसने आज़ादी की लड़ाई और देश के उतार–चढ़ाव को मौन साक्षी बनकर देखा, अब हमारे रोज़मर्रा के जीवन में प्रेरणा का जीवंत पात्र है—त्योहारों में सम्मान का केंद्र, बच्चों की कहानियों में आदर्श, और हर नागरिक के मन में मज़बूत भारत का संकल्प।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से स्वयंसेवक पंजीकरण, अभियान की भावना साझा करना, और तिरंगे के साथ अपनी तस्वीर अपलोड करना—यह पहल आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रही है, लेकिन इसके मूल में यह संदेश है कि प्रतीक तभी सार्थक हैं जब वे कर्म और सेवा में बदलें। राष्ट्रीय गौरव तभी पूर्ण होगा, जब वह संविधान के मूल्यों के प्रति निष्ठा, सामाजिक एकता और सक्रिय नागरिकता में दिखाई दे।
जब तिरंगा देशभर के हर घर पर लहराता है—चाहे वह ऊँची इमारत हो, छोटा गाँव हो या सीमांत चौकी—तो यह स्पष्ट संदेश देता है कि भारत की आत्मा धर्म, भाषा और भौगोलिक सीमाओं से परे है। यह झंडा बहुलता का प्रतीक है, बलिदान का ध्वज है, और आशा का दूत है।
अमृत काल में, यदि हमें राष्ट्रीय वादे की पूरी चमक को साकार करना है, तो ‘हर घर तिरंगा’ को एक निरंतर जन–संस्कृति बनाना होगा—जो हमें जुड़ाव, साझा नियति और राष्ट्रनिर्माण के संकल्प से पोषित करे। हर वह हाथ जो तिरंगा उठाए, वह उदासीनता और विभाजन के विरुद्ध उठे, और आज़ादी के गौरव का उत्सव मनाए। जैसा कि डॉ. यादव ने कहा है—तिरंगा सिर्फ़ कपड़ा और रंग नहीं, बल्कि भारत की धड़कन है—अटल, अमर और अजेय।