भारतीय प्रशासनिक सुधारों के इतिहास में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जो शासन की परिभाषा को ही बदल देते हैं। मध्य प्रदेश को नेशनल ई-गवर्नेंस गोल्ड अवार्ड दिलाने वाला Sampada 2.0 ऐसा ही एक मील का पत्थर है जहाँ भारी-भरकम फाइलों और लंबी कतारों वाली परंपरागत व्यवस्था को पीछे छोड़कर, राज्य ने पूरी तरह डिजिटल पारदर्शिता की दिशा में साहसी कदम रखा है।
यह महज़ किसी सॉफ़्टवेयर का अपग्रेड नहीं, बल्कि राज्य और नागरिक के रिश्ते का पुनर्निर्माण है। चाहे दूरस्थ गाँव में अपनी ज़मीन का पट्टा नवीनीकरण कराने वाला किसान हो, वर्षों से फँसे उत्तराधिकार विवाद को सुलझाने वाला बुज़ुर्ग, या कोई नया उद्यम शुरू करने वाला युवा हर किसी के लिए यह बदलाव महसूस करने योग्य है। अब न तो घंटों कतार में खड़े रहना पड़ता है, न ही कागज़ी अड़चनों का सामना करना सब कुछ तेज़, सरल और बिना आमने-सामने के संवाद के पूरा हो जाता है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व और वाणिज्यिक कर विभाग की निरंतर मेहनत से तैयार Sampada 2.0, आधार-आधारित प्रमाणीकरण, GIS-मैपिंग, और तुरंत दस्तावेज़ वितरण जैसी सुविधाओं को एक साथ जोड़कर प्रशासन को तेज़ और पारदर्शी बनाता है। जहाँ पहले प्रक्रिया धुंधली और धीमी थी, अब वहाँ स्पष्टता और गति है।
फिर भी, इस डिजिटल क्रांति की सफलता तभी स्थायी होगी जब इसके साथ साइबर सुरक्षा, डिजिटल साक्षरता और सभी के लिए इंटरनेट तक समान पहुंच सुनिश्चित की जाए। वरना यह पहल केवल उन लोगों के लिए लाभकारी रह जाएगी जो पहले से डिजिटल दुनिया से जुड़े हैं, और बाकी के लिए यह एक दूर का सपना बन सकती है।
मध्य प्रदेश ने एक दोहरे संकल्प को अपनाया है एक ओर वह देश के लिए मिसाल बन गया है, दूसरी ओर उसने बाकी राज्यों को चुनौती दी है कि वे भी अपनी पुरानी, समय से पीछे रह चुकी प्रक्रियाओं को तोड़कर आधुनिक डिजिटल शासन की ओर बढ़ें।
अब सवाल यह नहीं रह गया कि डिजिटलीकरण संभव है या नहीं सवाल यह है कि क्या अन्य राज्य भी उतने ही साहस, समझदारी और ईमानदार इरादे के साथ इस राह पर चल पाएंगे जितना कि Sampada 2.0 ने दिखाया है।