भारत की बदलती सुरक्षा चुनौतियों के दौर में, ऑपरेशन सिंदूर की सफलता केवल एक सैन्य उपलब्धि नहीं, बल्कि एक निर्णायक मोड़ है। यह उस यात्रा का प्रतीक है जिसमें तीनों सेनाएँ—थल, जल और वायु—सिर्फ साथ नहीं, बल्कि एकीकृत शक्ति के रूप में आगे बढ़ रही हैं।
चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कॉलेज ऑफ़ डिफ़ेन्स मैनेजमेंट में आयोजित 21वें हायर डिफ़ेन्स मैनेजमेंट कोर्स के दौरान अपने संबोधन में इस संयुक्तता की अनिवार्यता पर स्पष्ट दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में “जॉइंटनेस” केवल नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मूल आधार होगा।
जटिल दौर में समन्वय की अनिवार्यता
ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया कि वास्तविक अभियानों में समन्वय केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवित रहने की शर्त है। जब खतरों का स्वरूप लगातार बदल रहा हो, तब तीनों सेनाओं की ताकत एकसाथ चलना ही देश की ढाल बन सकती है।
जनरल चौहान ने स्पष्ट किया कि यह बदलाव सिर्फ सोच में नहीं, बल्कि संरचना में भी होना चाहिए—थिएटर कमांड, संगठनात्मक पुनर्गठन, और आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाना समय की माँग है।
लॉजिस्टिक्स—तलवार की अदृश्य धार
सीडीएस द्वारा जारी जॉइंट प्राइमर फॉर इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भविष्य की रूपरेखा है। आपूर्ति तंत्र को डिजिटाइजेशन, साझा संसाधन, और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स ग्रिड से जोड़ना, युद्ध क्षमता को नई ऊँचाई देता है। तेज़, सटीक और कुशल लॉजिस्टिक्स अब युद्ध में जीत-हार तय करने वाला कारक बन चुका है।
हरित सोच के साथ रणनीतिक गंभीरता
रणनीतिक चर्चाओं के बीच, सीडीएम का स्मार्ट बाइक पब्लिक शेयरिंग जैसी पर्यावरण-अनुकूल पहल शुरू करना यह दिखाता है कि सतत विकास और सैन्य मजबूती साथ-साथ चल सकते हैं। रक्षा प्रतिष्ठानों में कार्बन फुटप्रिंट कम करना एक ऐसी सोच है जो देश के संसाधनों के ज़िम्मेदार उपयोग को दर्शाती है।
भविष्य के नेतृत्व की तैयारी
मेजर जनरल हर्ष छिब्बर द्वारा अधिकारियों की अकादमिक और प्रोफेशनल क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर देना इस बात का प्रमाण है कि सीडीएम केवल एक प्रशिक्षण केंद्र नहीं, बल्कि सैन्य कूटनीति और ज्ञान का केंद्र बन चुका है। मित्र देशों के अधिकारियों की भागीदारी भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व और सहयोग की इच्छा को भी रेखांकित करती है।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर ने यह संदेश दिया है कि भविष्य की जीत अकेले हथियारों से नहीं, बल्कि एकीकृत सोच, समन्वित योजना और साझा संसाधनों से तय होगी। भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना—यह त्रिशूल—तभी अजेय होगा जब यह एक साथ चले और एक उद्देश्य से प्रेरित हो।