आज के दौर में, जहां हाशिये पर खड़े वर्गों की आवाज़ अक्सर विकास की मुख्यधारा से कट जाती है, छत्तीसगढ़ सरकार की हालिया घोषणा एक साहसिक संकेत है—अब असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की भलाई को न तो टाला जाएगा और न ही नज़रअंदाज़ किया जाएगा।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में शुरू हुई अटल श्रम सशक्तिकरण योजना कई योजनाओं को एक छत्र के नीचे लाकर सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, कौशल विकास और आजीविका समर्थन को एकीकृत रूप में असंगठित क्षेत्र के विशाल कार्यबल तक पहुँचाने का प्रयास है। “श्रमेव जयते” पोर्टल के जरिए श्रमिक और सरकार के बीच सीधा और सरल संपर्क बनाया गया है, ताकि लाभ बिना जटिल कागजी कार्यवाही के तेज़ी से मिल सकें।
प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष दृष्टिकोण
योजना का एक संवेदनशील पहलू प्रवासी श्रमिकों पर केंद्रित है। ये वे लोग हैं जो रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं और दोहरी असुरक्षा झेलते हैं—आर्थिक अनिश्चितता और नीतिगत अदृश्यता। इसके समाधान के लिए उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ‘मोर चिन्हारी भवन’ स्थापित किए जाएंगे। ये केवल रहने की जगह नहीं, बल्कि मार्गदर्शन, कानूनी सहायता और समुदाय का सहारा भी देंगे।
स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ा कदम
अतीत में असंगठित श्रमिक वर्ग को उच्च स्तरीय चिकित्सा सेवाएं शायद ही मिल पाती थीं। इस कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने 106 निजी अस्पतालों से करार किया है, ताकि हृदय, गुर्दा, स्नायु तंत्र और जटिल सर्जरी जैसी सेवाएं कैशलेस उपलब्ध हों। इसके साथ ही भिलाई, रायगढ़ और बिलासपुर में 100-100 बिस्तरों वाले ईएसआई अस्पताल और टिल्दा, उरला, लारा, खरसिया जैसे श्रमिक-बहुल क्षेत्रों में नए औषधालय खोले जाएंगे।
भोजन और आर्थिक सहयोग
शहीद वीर नारायण सिंह श्रम अन्न योजना के तहत प्रमुख श्रमिक स्थलों पर सिर्फ ₹5 में पौष्टिक भोजन मिलेगा—महंगाई और कुपोषण के समय में यह एक छोटा लेकिन बेहद प्रभावी कदम है। पंजीकृत श्रमिकों को बैंक ऋण पर ब्याज में सब्सिडी देने की योजना भी है, जिससे वे मजदूरी से आत्मनिर्भर व्यवसाय की ओर बढ़ सकें।
वित्तीय प्रतिबद्धता
वित्तीय वर्ष 2024-25 में भवन निर्माण श्रमिक कल्याण के लिए ₹505 करोड़ और संगठित श्रमिक वर्ग के लिए ₹6 करोड़ का प्रावधान किया गया है। सीमित बजट के बावजूद यह स्पष्ट संदेश है कि मानव पूंजी को प्राथमिकता दी जा रही है।
कार्यान्वयन ही असली चुनौती
बड़ी योजनाओं में खतरा यह होता है कि उनकी व्यापकता प्रशासनिक फोकस को कमजोर कर देती है। इस जोखिम को कम करने के लिए सरकार संभागीय श्रम कल्याण कार्यालय स्थापित करेगी, जिन्हें केवल नाममात्र की भूमिका नहीं, बल्कि वास्तविक निगरानी की शक्ति दी जानी चाहिए।
समाजशास्त्री जान ब्रेमन का एक विचार यहां प्रासंगिक है—“श्रमिक इसलिए प्रवास करता है क्योंकि काम उसके पास नहीं आता।” अटल श्रम सशक्तिकरण योजना, प्रवास, स्वास्थ्य, भोजन और आत्मनिर्भरता के जुड़े हुए आयामों के माध्यम से, शायद पहली बार इस पैमाने पर, श्रमिक तक पहुंचने, उसके गिरने पर सहारा देने और खड़े होने पर उसे मजबूती देने का प्रयास है।
यदि इसे ईमानदारी और निरंतरता से लागू किया गया, तो यह केवल कल्याणकारी योजना नहीं, बल्कि श्रमिकों के प्रति ऐतिहासिक न्याय साबित हो सकती है।