आज जब विकास की परिभाषा अक्सर कंक्रीट, शीशे और ऊँची इमारतों की भाषा में लिखी जाती है—जहाँ आसमान छूती इमारतों पर गर्व होता है, पर पेड़ों की कतारें भूला दी जाती हैं—तभी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का संदेश ‘समन्वय विद एन्वायरनमेंट’ संगोष्ठी में एक ताज़गी भरा स्मरण कराता है कि असली प्रगति प्रकृति को जीतने में नहीं, बल्कि उससे संवाद करने में है।
उन्होंने भोपाल के बड़ा तालाब का उदाहरण दिया—प्राकृतिक चट्टानों के बीच बना यह प्राचीन जलाशय बरसात के पानी को सहेजता है, बिना किसी नदी को बाँधकर उसका प्रवाह रोके। यह कोई थोपे गए ढाँचे की तरह नहीं, बल्कि धरती के साथ साझेदारी का प्रतीक है—सदियों तक टिकाऊ, कम खर्चीला, और इतना समझदार कि अतिरिक्त पानी को अपनी राह खुद ढूँढने दे। डॉ. यादव के अनुसार, यही भारत की असली इंजीनियरिंग विरासत है—जहाँ डिज़ाइन काग़ज़ पर नहीं, बल्कि ज़मीन की बनावट से शुरू होता है।
लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने इतिहास की और परतें खोलीं—तमिलनाडु का दो हज़ार साल पुराना अनई कट्टू बाँध, या मोहनजोदड़ो की सात हज़ार साल पुरानी पकी ईंटें, जिन्हें ब्रिटिश काल में रेल पटरियों के नीचे लगाया गया और वे आज भी मज़बूत हैं। उनका संकेत साफ़ था—हमारे पूर्वजों की सोच में स्थायित्व और पर्यावरण-सम्मतता पहले से ही ‘डिफ़ॉल्ट’ थी, जबकि आज का ढाँचा जल्दी टूटने और बदलने वाली प्रवृत्ति का शिकार है।
नीतिगत कदम जो ज़मीन पर दिखेंगे
- सड़कों की मरम्मत अवधि 7 दिन से घटाकर 4 दिन करना
- बिटुमेन की खरीद केवल सरकारी रिफ़ाइनरी से, ताकि गुणवत्ता बनी रहे
- लोकपथ मोबाइल ऐप से गड्ढों की डिजिटल मॉनिटरिंग
- सड़क निर्माण से निकली मिट्टी से लोक कल्याण सरोवर बनाना
- हर किलोमीटर नई सड़क के साथ भूजल पुनर्भरण बोर लगाना
- सभी पीडब्ल्यूडी भवनों में वर्षा जल संचयन, सौर ऊर्जा, हरियाली और सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध
तकनीक से सटीक योजना
पीएम गति शक्ति प्लेटफ़ॉर्म उपग्रह डाटा, जीआईएस, ज़मीन के रिकॉर्ड और सभी विभागों की योजनाओं को एक ही डिजिटल मानचित्र पर जोड़ देगा। यह केवल दक्षता का उपकरण नहीं, बल्कि पर्यावरणीय ग़लतियों से बचने का नैतिक उपाय भी है।
इंजीनियर: निर्माता नहीं, सभ्यता के मार्गदर्शक
पर्यावरणविद गोपाल आर्य ने इंजीनियर की भूमिका को “सभ्यता के पथप्रदर्शक” के रूप में परिभाषित किया। उनका सबसे असरदार उदाहरण था—पेड़ लगाना सात पीढ़ियों की जीवन बीमा पॉलिसी जैसा है। छोटे पौधे एक दिन विशाल छाँव देंगे, मिट्टी को थामेंगे, हवा को स्वच्छ करेंगे—यह सदियों का निवेश है।
यह संगोष्ठी पहली बार पूरे प्रदेश के इंजीनियरों को, भौतिक और वर्चुअल दोनों रूप में, एक मंच पर लाई—ताकि विकास और पर्यावरण का संतुलन सिर्फ़ विचार न रहकर पेशेवर नैतिकता का हिस्सा बने।
चुनौती: इरादे से परिणाम तक
डॉ. यादव ने कहा, “विकास की ट्रेन पर्यावरण की पटरी से कभी नहीं उतरेगी।” मगर ट्रेन सुरक्षित तभी रहती है जब कैमरों के जाने के बाद भी उसकी देखभाल जारी रहे। असली प्रगति सीधी रेखा में नहीं, बल्कि नदी के साथ मुड़ते बाँध, हिरण को रास्ता देने वाले अंडरपास, और बारिश थामने के लिए झुकती छत में नज़र आती है।
मध्यप्रदेश का यह प्रयोग तभी सफल होगा जब यह अपवाद नहीं, बल्कि विकास की रोज़मर्रा की व्याकरण बन जाए।