भारत अपनी जनसंख्या की ऊर्जा को अवसर में बदलने के निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। युवा शक्ति को रोज़गार और आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाना किसी भी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में जशपुर जिले में जिस तरह कौशल विकास की पहल की है, वह इसी दिशा में एक ठोस और दूरगामी कदम है।
जशपुर के लाइवलिहुड कॉलेज परिसर में संचालित नवगुरुकुल संस्थान ने ग्रामीण बेटियों के लिए नई संभावनाओं के दरवाज़े खोले हैं। यहाँ छात्राओं को न केवल निःशुल्क प्रशिक्षण मिल रहा है, बल्कि आवास, भोजन और लैपटॉप जैसी सुविधाएँ भी दी जा रही हैं। इससे वे दोहरी बाधाओं—भौगोलिक दूरी और आर्थिक तंगी—से मुक्त होकर अपने सपनों की उड़ान भर पा रही हैं।
इन पहलों से निकली कहानियाँ अपने आप में प्रेरणा हैं। कंकुरी की नेहा खाखा ने बारहवीं पास करने के बाद इस कार्यक्रम से जुड़कर डिजिटल कौशल सीखा और अब 15,000 रुपये की मासिक आय अर्जित करते हुए दूसरों को पढ़ा रही हैं। उनकी यात्रा बताती है कि सही प्रशिक्षण से युवाओं की दिशा कैसे बदल सकती है।
इसी तरह, पथलगाँव की वृंदावती यादव, जो कभी आर्थिक चिंताओं से जकड़ी थीं, अब प्रोग्रामिंग सीखकर शिक्षा और पार्ट-टाइम काम के बीच संतुलन बनाती हैं। उनकी 13,000 रुपये की कमाई केवल आय नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की पुनः प्राप्ति है।
बगीचा की उषा यादव की कहानी तो और भी अलग है। डिज़ाइन के प्रति बचपन का शौक संसाधनों की कमी से अधूरा रह गया था, लेकिन नवगुरुकुल के ग्राफिक डिज़ाइनिंग कोर्स ने उनके सपनों को नया आकार दिया। अब वे व्यवसाय अध्ययन और उद्यमिता की दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
ये उदाहरण केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं हैं। यह उस व्यापक दृष्टि का हिस्सा हैं जिसमें शिक्षा, तकनीक और रोज़गार मिलकर समाज को बदलने की क्षमता रखते हैं। ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत की वास्तविकताओं के बीच यह पहल दिखाती है कि जब सरकार, संस्थान और युवा एक साथ आगे बढ़ते हैं, तो परिवर्तन केवल संभव नहीं, बल्कि अनिवार्य हो जाता है।
लेकिन यहाँ ठहरना नहीं है। ऐसे मॉडल को व्यापक स्तर पर लागू करना होगा, ताकि यह केवल कुछ जिलों तक सीमित न रहकर पूरे देश के लिए प्रेरणा बने। बदलते तकनीकी और श्रम बाज़ार की मांगों के साथ इन कार्यक्रमों को निरंतर अद्यतन करना भी ज़रूरी है।
आज जब रोज़गार और सशक्तिकरण दोनों ही बराबर की चुनौती हैं, जशपुर की यह पहल उम्मीद की किरण है। नेहा, वृंदावती और उषा ने यह साबित किया है कि अवसर और तैयारी जब साथ आते हैं, तो न सिर्फ़ ज़िंदगियाँ बदलती हैं, बल्कि पूरा समाज नई दिशा पकड़ लेता है।