कभी-कभी नीतियाँ केवल आँकड़े नहीं बदलतीं, बल्कि लोगों की सोच और जीवनशैली को भी रूपांतरित कर देती हैं। प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना ऐसी ही पहल है, जिसने भारतीय घरों की छतों को ऊर्जा के स्रोत में बदलकर आत्मनिर्भरता का नया अध्याय खोला है। बिलासपुर के चांटीडीह निवासी अशोक साहू की कहानी इसका जीवंत प्रमाण है।
छत से शुरू हुई क्रांति
सालों तक साहू परिवार हर महीने बिजली बिल के बोझ से दबा रहता था। खपत बढ़ती गई और भुगतान जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गया। लेकिन जब साहू ने अपनी छत पर सोलर पैनल लगवाए—एक 4 किलोवाट का अपने घर पर और 3 किलोवाट का पत्नी प्रीति साहू के नाम पर—तो तस्वीर पूरी तरह बदल गई। आज उनका घर उतनी ही बिजली पैदा करता है जितनी खपत होती है। नतीजा: शून्य मासिक बिल और गर्व की अनुभूति कि उनका घर अतिरिक्त बिजली राज्य की ग्रिड को भी दे रहा है।
सब्सिडी से साकार हुआ सपना
यह बदलाव केवल तकनीक से नहीं, बल्कि सुनियोजित आर्थिक सहारे से संभव हुआ। केंद्र सरकार से 78,000 रुपये और राज्य सरकार से 30,000 रुपये तक की सब्सिडी ने महँगी लागत को साधारण परिवारों के लिए सहज बनाया। अशोक साहू के 1.9 लाख रुपये के 3 किलोवाट सिस्टम का 90% खर्च और 2.4 लाख रुपये के 4 किलोवाट सिस्टम का बड़ा हिस्सा इन अनुदानों से ही पूरा हुआ। बीस-पच्चीस साल तक चलने वाली इन इकाइयों ने परिवार को केवल राहत नहीं, बल्कि स्थायी सुरक्षा दी है।
केवल बचत नहीं, जिम्मेदारी भी
सूर्यघर योजना का महत्व सिर्फ़ पैसों तक सीमित नहीं है। हर छत पर लगा पैनल कोयले पर निर्भरता कम करता है और कार्बन उत्सर्जन घटाता है। यानी यह योजना परिवारों को न सिर्फ़ आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि उन्हें जलवायु संकट से लड़ाई का सिपाही भी बना देती है।
सामूहिक लाभ और रोजगार की संभावनाएँ
साहू परिवार की कहानी व्यक्तिगत राहत की है, लेकिन इस योजना में सामूहिक लाभ भी छिपा है। सोलर सिस्टम की स्थापना और रखरखाव से रोज़गार बढ़ेगा, गाँव-कस्बों में नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति जागरूकता फैलेगी और नेट मीटरिंग से हर घर उपभोक्ता ही नहीं, उत्पादक भी बनेगा। यह नागरिक भागीदारी का सम्मान है।
चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
फिर भी यह यात्रा आसान नहीं है। वित्तीय प्रक्रियाओं को सरल बनाना, परिवारों को तकनीकी जानकारी देना और सेवाओं को मानकीकृत करना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर निगरानी ढीली हुई तो उम्मीद का उजाला जल्दी ही उपेक्षा की छाया में खो सकता है।
निष्कर्ष: ऊर्जा का लोकतंत्रीकरण
बिलासपुर से उठी यह कहानी दिखाती है कि कैसे एक साधारण परिवार छत पर लगे पैनल से अपने जीवन का समीकरण बदल सकता है। अगर आयुष्मान भारत ने स्वास्थ्य को अधिकार बनाया है, तो सूर्यघर योजना ऊर्जा के क्षेत्र में वही भूमिका निभा सकती है—बिजली अब विशेषाधिकार नहीं, बल्कि हर नागरिक का हक़ हो।