मध्यप्रदेश की नई नीतिगत दिशा
भोपाल में मंत्रिपरिषद की बैठक को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल में जिस तरह सुधारों और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को एक साथ रखने का प्रयास किया, वह केवल प्रशासनिक विमर्श नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। उन्होंने केंद्र सरकार के नवीनतम जीएसटी सुधार को “सुविधा और समृद्धि का तोहफ़ा” बताया और कहा कि इसका लाभ किसान, लघु उद्योग, महिलाएँ, युवा और मध्यमवर्ग सभी तक पहुँचेगा। उनका यह आग्रह कि मंत्रीगण इन सुधारों को हर माध्यम से जनता तक पहुँचाएँ, इस बात का संकेत है कि सुधार केवल तकनीकी प्रावधान नहीं बल्कि स्वीकार्यता और संवाद की राजनीति भी है।
जीएसटी का नया स्वरूप
2017 में लागू होने के बाद से जीएसटी को कभी ऐतिहासिक कदम तो कभी जटिल संरचना का बोझ कहा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित “नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी” का उद्देश्य अब अनुपालन सरल बनाना और छोटे कारोबारियों का बोझ घटाना है। डॉ. यादव जब इसे “जन-जन का सुधार” कहकर आत्मनिर्भर भारत और “स्वदेशी दीवाली” से जोड़ते हैं तो वे कर सुधार को सांस्कृतिक और भावनात्मक कथा का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यही वर्तमान शासन शैली की विशेषता है—प्रशासनिक निर्णय को प्रतीकात्मक अर्थ प्रदान करना।
पीएम मित्रा पार्क: स्थानीय से वैश्विक तक
धार जिले के बड़नावर में देश का पहला पीएम मित्रा पार्क 17 सितंबर को प्रारंभ होगा। इसे मध्यप्रदेश की औद्योगिक पहचान को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने वाला कदम माना जा रहा है। साथ ही “हेल्दी वुमन–स्ट्रॉन्ग फैमिली”, “एक पेड़ माँ के नाम”, “जनमन योजना” और “जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान” जैसी पहलें इस दृष्टिकोण को बहुआयामी बनाती हैं। यह केवल औद्योगिक प्रगति ही नहीं बल्कि महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण चेतना और आदिवासी विकास का संयुक्त संदेश है।
विशेष रूप से “माँ के नाम पेड़” जैसी पहल यह बताती है कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक अवधारणा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भावनाओं को सम्मान देने का माध्यम भी है।
स्वच्छता: सेवा का उत्सव
17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक आयोजित “सेवा पखवाड़ा” के तहत स्वच्छता अभियान, गंदगी वाले क्षेत्रों की पहचान और सफाईकर्मी सुरक्षा शिविर जैसी गतिविधियाँ होंगी। यह महज़ सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं बल्कि गांधीजी की स्वच्छता-दर्शन को सामूहिक अनुष्ठान में बदलने की कोशिश है। गैर-सरकारी संगठनों और धार्मिक संस्थाओं की भागीदारी से इसे केवल प्रशासनिक कार्यवाही न मानकर नागरिक कर्तव्य के रूप में गढ़ा जा रहा है।
भोपाल सम्मेलन: दीर्घकालिक सोच
दशहरा के बाद भोपाल में कलेक्टर-कमिश्नर सम्मेलन बुलाया गया है जिसमें जिले और राज्य स्तर के अधिकारी मिलकर आने वाले वर्षों के लिए विज़न डॉक्युमेंट तैयार करेंगे। यह इंगित करता है कि सरकार तात्कालिक घोषणाओं की बजाय दीर्घकालिक रणनीति पर बल दे रही है।
निष्कर्ष: सुधार या प्रतीकवाद?
इन घोषणाओं से एक पैटर्न स्पष्ट होता है—नीति और प्रतीक का संगम। जीएसटी सुधार को “स्वदेशी दीवाली” कहना हो या स्वच्छता अभियान को सेवा पर्व में बदलना, यहाँ शासन और संस्कृति के बीच की रेखा धुंधली हो रही है।
सवाल यह भी उठेगा कि क्या यह सब व्यवहार में उतरेगा? क्या नया जीएसटी सचमुच छोटे व्यापारियों को राहत देगा? क्या मित्रा पार्क से युवाओं को रोज़गार मिलेगा या यह केवल उद्घाटन तक सीमित रह जाएगा? क्या सेवा पखवाड़ा स्थायी आदत बनेगा या फ़ोटो-ऑप तक ही रहेगा?
फिर भी, यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री सुधारों को केवल आँकड़ों का खेल नहीं, बल्कि जनकथा और सांस्कृतिक यात्रा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। आत्मनिर्भरता से समृद्धि, स्वच्छता से सेवा, और कर सुधार से सामाजिक न्याय—यदि इन कथाओं को ठोस परिणामों से जोड़ा जा सके तो यह केवल शासन की उपलब्धि नहीं बल्कि समाज की भागीदारी का उत्सव बन सकता है।