Saturday, September 13, 2025

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कोंडागांव का स्वास्थ्य चमत्कार

जन-चिकित्सा में नया विश्वास

भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर अक्सर लापरवाही और अव्यवस्था के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन हाल ही में बस्तर के कोंडागांव ज़िला अस्पताल ने एक ऐसा इतिहास रचा, जिसने साबित कर दिया कि उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा अब महानगरों तक सीमित नहीं है। पहली बार यहाँ लेप्रोस्कोपिक किडनी सर्जरी सफलतापूर्वक की गई, जो किसी भी दृष्टि से मील का पत्थर है।

इस उपलब्धि के केंद्र में हैं सावित्री कोर्राम, 35 वर्षीय घरेलू कामगार, जो वर्षों से बीमारी और गरीबी के दोहरे बोझ तले जीवन गुजार रही थीं। निजी अस्पतालों में इलाज कराना उनके लिए असंभव था। लेकिन ज़िला अस्पताल की सर्जन टीम, डॉ. एस. नागुलन के नेतृत्व में, पारंपरिक ऑपरेशन के बजाय आधुनिक लेप्रोस्कोपिक तकनीक अपनाकर तीन घंटे की जटिल सर्जरी को सफल बनाया। आज सावित्री स्वस्थ जीवन की ओर लौट रही हैं। उनका भावुक बयान है:
“गरीबी और बीमारी ने जीवन खत्म कर दिया था, लेकिन ज़िला अस्पताल और आयुष्मान कार्ड ने मुझे नया जीवन दिया।”

सरकार की दूरदृष्टि और चिकित्सा का साहस

यह सफलता केवल डॉक्टरों का साहसिक प्रयास नहीं, बल्कि शासन की दूरदृष्टि का भी परिणाम है। कलेक्टर नूपुर राशि पन्ना, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आर.के. चतुर्वेदी और सिविल सर्जन डॉ. प्रेम मांदवी की टीम ने प्रशासनिक स्तर पर इसे संभव बनाया। वहीं, मुख्यमंत्री विश्नुदेव साय और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल की नीति-निष्ठा ने यह सुनिश्चित किया कि बस्तर जैसे दूरस्थ अंचल में भी आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध हो।

मुख्यमंत्री साय का स्पष्ट संकल्प है कि अब गंभीर बीमारियों के लिए गरीबों को रायपुर या विशाखापट्टनम की ओर पलायन न करना पड़े। आयुष्मान भारत योजना और स्वास्थ्य विभाग की सतत सक्रियता ने इस दिशा में ठोस परिणाम दिखाना शुरू कर दिया है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य की नई परिभाषा

कोंडागांव की यह सर्जरी केवल चिकित्सकीय सफलता नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में नए विश्वास की कहानी है। यह संदेश है कि अगर सरकारी अस्पतालों को संसाधन और भरोसा दोनों मिलें, तो वे निजी संस्थानों को भी चुनौती दे सकते हैं। यह उदाहरण आने वाले समय में और अस्पतालों के लिए प्रेरणा बनेगा।

निष्कर्ष

सावित्री को मिला नया जीवन केवल व्यक्तिगत राहत नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश है। यह साबित करता है कि असली विकास ऊंची इमारतों या चुनावी नारों में नहीं, बल्कि सामान्य नागरिक को जीने की गरिमा लौटाने में है। मुख्यमंत्री विश्नुदेव साय की प्रतिबद्धता ने यह दिखा दिया कि ‘नई उम्मीदें अब गांव-गांव से जन्म ले रही हैं।’

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