उत्तराखंड की नाजुक भौगोलिक परिस्थितियाँ बार-बार हमें याद दिलाती हैं कि यहाँ विकास और आपदा प्रबंधन साथ-साथ चलने वाली चुनौतियाँ हैं। अतिवृष्टि और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएँ जब जनजीवन को बाधित करती हैं, तब शासन की सक्रियता और संवेदनशीलता ही जनता के मन में भरोसा जगाती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का मसूरी रोड और किमाड़ी के आपदा प्रभावित क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण इसी संवेदनशील नेतृत्व का उदाहरण है।
स्थलीय निरीक्षण के दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि मुख्य सड़कों की त्वरित मरम्मत कर यातायात बहाल किया जाए, और जहाँ मार्ग बाधित हैं वहाँ तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराई जाए। यह केवल प्रशासनिक आदेश नहीं बल्कि इस संकल्प का प्रतीक है कि जनता की परेशानी को न्यूनतम करने के लिए सरकार युद्धस्तर पर काम कर रही है।
त्वरित राहत और जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री ने प्रभावित परिवारों को मानकों के अनुसार त्वरित आर्थिक सहायता देने और राहत शिविर स्थापित करने पर बल दिया। निरंतर वर्षा को देखते हुए वैकल्पिक मार्गों और शिविरों की प्राथमिकता यह दर्शाती है कि सरकार केवल वर्तमान संकट नहीं, बल्कि संभावित कठिनाइयों को भी ध्यान में रख रही है।
सरकार का संकल्प
धामी सरकार का यह स्पष्ट संदेश है कि संकट की इस घड़ी में कोई भी परिवार अकेला नहीं है। “जनजीवन को शीघ्र सामान्य बनाने” का आह्वान केवल राजनीतिक घोषणा नहीं बल्कि संवेदनशील शासन का व्यावहारिक संकल्प है।
आगे की राह
उत्तराखंड जैसे आपदा-प्रवण राज्य में स्थायी समाधान की राह यही है कि आपदा प्रबंधन केवल राहत और पुनर्वास तक सीमित न रहे, बल्कि दीर्घकालिक नीतियों, बेहतर ढांचागत व्यवस्थाओं और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित हो। मुख्यमंत्री का त्वरित स्थलीय निरीक्षण इस दिशा में भरोसे की नींव रखता है।
आपदा किसी की शक्ति की परीक्षा नहीं बल्कि शासन और समाज की सामूहिक जिम्मेदारी का क्षण होती है। मुख्यमंत्री धामी का यह कदम साबित करता है कि उत्तराखंड अपने नागरिकों को सुरक्षित और समर्थ रखने की राह पर दृढ़ता से अग्रसर है।