मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का यह कथन कि “उत्तराखंड की बुनाई और हस्तशिल्प कला राज्य की सांस्कृतिक धरोहर के संवाहक हैं” केवल औपचारिक घोषणा नहीं, बल्कि एक गहरी सच्चाई का प्रतिबिंब है। मुख्यमंत्री आवास में आयोजित उत्तराखंड हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद के कार्यक्रम में जब प्रदेशभर के 11 शिल्पियों को उत्तराखंड शिल्प रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो यह केवल व्यक्तिगत उपलब्धि का उत्सव नहीं था, बल्कि सामूहिक परंपरा, रचनात्मकता और संघर्षशीलता की पहचान का सम्मान था।
परंपरा से आधुनिकता की ओर
उत्तरकाशी की ऊनी शाल हो या अल्मोड़ा की ट्वीड, मुनस्यारी-धारचूला की थुलमा हो या छिनका की पंखी इन हस्तशिल्प उत्पादों ने उत्तराखंड को राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान दी है। आज जब भांग और बाँस के रेशों से बने वस्त्रों की देशभर में मांग बढ़ रही है, तब यह स्पष्ट है कि परंपरागत हुनर को आधुनिक बाजार से जोड़ने की क्षमता राज्य के शिल्पियों में है।
प्रधानमंत्री की पहल और धामी सरकार का संकल्प
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “वोकल फॉर लोकल” और “लोकल टू ग्लोबल” जैसे अभियानों ने कारीगरों को नई ऊर्जा दी है। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना और राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम जैसी पहलें शिल्पियों को केवल सहारा ही नहीं देतीं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की दिशा में आगे बढ़ाती हैं। धामी सरकार भी शिल्पी पेंशन, शिल्प रत्न पुरस्कार, कौशल विकास प्रशिक्षण, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और मेलों-प्रदर्शनियों के माध्यम से इन प्रयासों को राज्य स्तर पर गति दे रही है।
स्वदेशी से आत्मनिर्भरता तक
मुख्यमंत्री धामी का यह आह्वान कि हर नागरिक स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता दे, महज आर्थिक रणनीति नहीं है। यह आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ने का व्यावहारिक मार्ग है। जब उपभोक्ता स्थानीय उत्पादों को अपनाता है, तो वह सीधे शिल्पियों, बुनकरों और किसानों के जीवन में नई रोशनी भरता है।
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा संदेश यह है कि शिल्प और हस्तकला केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का आधार हैं। उत्तराखंड के बुनकर और शिल्पकार अपनी परंपरा के साथ आधुनिकता का ताना-बाना बुनते हुए राज्य को न केवल आत्मनिर्भर बनाएंगे, बल्कि देश की कला-धरोहर को भी वैश्विक मंच पर स्थापित करेंगे।
निष्कर्ष
उत्तराखंड हथकरघा एवं हस्तशिल्प परिषद का यह आयोजन सिर्फ पुरस्कार वितरण नहीं था, बल्कि यह विश्वास जगाने का अवसर था कि हमारी विरासत, यदि सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए नयी आर्थिक और सांस्कृतिक संभावनाओं के द्वार खोल सकती है। मुख्यमंत्री धामी का यह संकल्प निश्चित ही उस दिशा में एक मजबूत कदम है।