Friday, May 9, 2025

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हरियाली तीज पर प्रकृति हुई हरी भरी, महिलाएं झूल रही झूला 

चूरू हरियाली तीज पर प्रकृति हुई हरी भरी, हरियाली तीज पर महिलाएं झूल रही झूला, महिलाओं ने कहा_हरियाली तीज हैं आस्था, प्रेम, सौंदर्य व उमंग का त्यौहार। चूरू इस समय श्रावण का महीना चल रहा ओर बरसात के मौसम में चारों ओर हरियाली की चादर सी बिखरी हुई है, जिसे देख कर सबका मन झूम रहा है। सावन का महिना एक अलग ही मस्ती और उमंग लेकर आता है।
वही श्रावण के सुहावने मौसम के बीच आज हरियाली तीज का त्यौहार हैं। महिलाए हरियाली तीज पर बगीचों में झूला झूलते हुए नजर आ जाती है। तीज का व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिए खास महत्व रखता है। झूलों के बिना हरियाली तीज को अधूरा माना जाता हैं । इस मौके पर महिलाएं अच्छी फसल के लिए भी प्रार्थना करती हैं। तीज पर मेहंदी लगाने, चूडियां पहनने, झूला झूलने तथा लोक गीतों को गाने का विशेष महत्व है। तीज के त्यौहार वाले दिन खुले स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत पर या बरामदे में झूले लगाए जाते हैं जिन पर स्त्रियां झूला झूलती हैं।
धोरों की धरती चूरू में भी तीज उत्साह पूर्वक महिलाएं बना रही है। शहर की मोनीका सैनी ने बताया कि सालभर में एक बार आने वाला हरियाली तीज का त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व अखंड सौभाग्य और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की विधिवत पूजा अर्चना के साथ ही व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने पर सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। श्रावण के महीने में मनायी जानेवाली हरियाली तीज आस्था, प्रेम, सौंदर्य व उमंग का त्यौहार है।
यह पर्व महिलाओं की सांस्कृतिक मान्यताओं का प्रतीक है। सावन माह में मनाया जाने वाला हरियाली पर्व दंपतियों के वैवाहिक जीवन में समृद्धि, खुशी और तरक्की का प्रतीक है। वहीं शहर की सपना लूनिया ने बताया कि 10 दिन पहले से ही तीज की तैयारियां शुरू हो जाती थीं। कुंवारी लड़कियों के लिए सिंधारा और शादीशुदा महिलाओं की कोथली देने का प्रचलन था, परंतु नई पीढ़ी में अब वो आनंद और उत्साह देखने को नहीं मिलता।
पहले घरों में मीठा तीज पर ही बनता था, लेकिन अब 12 महीने मिठाइयां भी उपलब्ध रहती हैं और बीमारियां बढ़ने के चलते लोग मीठे से उदासीन भी रहते हैं। पहले के समय में नई ब्याही महिलाएं सावन के शुरुआत होते ही अपने मायके आ जाती थीं। यहां पर वो अपनी सहेलियों के संग मिलकर सावन और तीज का त्योहार मनाती थीं। इसकी तैयारी एक महीने पहले ही शुरू हो जाती थी। नीम, बरगद या पीपल के पेड़ में झूला बांध कर उसे फूलों से सजा कर तैयार करती थीं।

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