31 जुलाई को हरियाणा के नूंह में बजरंग दल ने धार्मिक यात्रा का आयोजन किया था
यात्रा में हरियाणा हजारों की संख्या में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया
यात्रा जब नूंह में मंदिर से आगे बढ़ी तो पथराव शुरू हो गया और देखते ही देखते भीड़ ने आगज़नी शुरू कर दी
भीड़ ने शहर की सड़कों और मंदिर के बाहर गोलियां भी चलाईं
बड़ी संख्या में लोग मंदिर में फंसे रहे, जिन्हें प्रशासन की मदद से बाहर निकाला गया
हिंसा में अब तक छह लोगों की मौत हुई, जिसमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल हैं
अब तक 116 लोगों को गिरफ्तारी और 90 लोगों से पूछताछ की जा रही है
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आम दिनों में हरियाणा के नूंह ज़िले की जिन सड़कों पर चहल-पहल रहती थी, वहाँ इस वक़्त सन्नाटा पसरा हुआ है, गश्त करते हुए अर्धसैनिक बलों की आवाज़ें ज़रूर सुनी जा सकती हैं.
प्रशासन ने सड़कों से जली हुई गाड़ियों को भले उठा लिया हो, लेकिन उनके निशान पूरे शहर में फैले हुए हैं, जो सोमवार को भड़की सांप्रदायिक हिंसा की गवाही दे रहे हैं.
लोग पिछले तीन दिनों से कर्फ़्यू के चलते घरों में क़ैद हैं और दुकानों के बाहर ताले लटके हुए हैं, कर्फ्यू में पहली बार ढील शुक्रवार की दोपहर को दी गई.
नूंह में सांप्रदायिक हिंसा तो थम गई है, लेकिन आसपास के शहरों से रह-रहकर आगजनी की ख़बरें लगातार आ रही हैं, जिसके चलते शहर में तनाव अब भी क़ायम है.
सोमवार, 31 जुलाई को नूंह दिन भर जलता रहा, भीड़ में कुछ लोग तलवारें, डंडे और बूंदकें लहराते हुए नजर आए. हज़ारों लोग शहर में अपनी जान बचाने के लिए जहाँ-तहाँ भागते हुए दिखाई दिए.
ये दृश्य यहाँ के लोगों ने इससे पहले कभी नहीं देखे थे. आज़ादी के बाद पहली बार इस इलाक़े में भड़की सांप्रदायिक हिंसा ने नूंह के आपसी भाईचारे पर ऐसे काले धब्बे लगा दिए हैं, जिन्हें भुलाना और मिटाना आसान नहीं होगा.
सवाल है कि इतने बड़े पैमाने पर शहर में यह हिंसा क्या अचानक भड़की?
क्या यह कोई सोची-समझी साज़िश थी? यह कब और कैसे शुरू हुई? क्या प्रशासन को इसका अंदाज़ा था? क्या जान-माल की हानि को रोका जा सकता था?