दक्षिण कोरिया ने राजनीतिक अराजकता के कगार से वापस लौटते हुए अपनी लोकतांत्रिक ताकत का प्रदर्शन किया है। मंगलवार को राष्ट्रपति यून सुक योल ने मार्शल लॉ की घोषणा कर देश को झकझोर दिया था, जिसमें राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया। हालांकि, देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं और जनता ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए, अधिनायकवाद की काली छाया को टाल दिया।
संसद की दृढ़ता
दक्षिण कोरिया की संसद ने राष्ट्रपति के इस अधिनायकवादी कदम का तुरंत विरोध किया। देर रात एक आपातकालीन सत्र में, सांसदों ने, जिनमें यून की अपनी पार्टी पीपल्स पावर पार्टी के सदस्य भी शामिल थे, एक दुर्लभ एकता दिखाते हुए मार्शल लॉ के आदेश को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया।
संसदीय भवन को खाली कराने के राष्ट्रपति के आदेश का पुलिस और सेना द्वारा पालन करने से इनकार करना इस दृढ़ता को और मजबूत बना गया। इस बड़े विरोध का सामना करते हुए, राष्ट्रपति यून को अपने कदम से पीछे हटना पड़ा। 4 दिसंबर की सुबह उन्होंने एक और टीवी संबोधन में मार्शल लॉ की घोषणा को वापस ले लिया। यह राष्ट्रपति के लिए एक करारी हार साबित हुई और अब सांसद उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं।
जनता और संस्थानों की ताकत
इस संकट ने दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र की परिपक्वता को उजागर किया। हजारों नागरिक संसद के बाहर इकट्ठा हुए, आदेश का विरोध किया और अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों का समर्थन किया। शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त विरोध ने यह दिखाया कि 1970 के दशक के अंत में मार्शल लॉ के खत्म होने के बाद से देश में गहरे लोकतांत्रिक जड़ें जम चुकी हैं।
राज्य संस्थानों—पुलिस और सेना—द्वारा असंवैधानिक आदेशों का पालन करने से इनकार करना, संकट को टालने में एक महत्वपूर्ण कारक था। उनके लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति वफादारी ने दिखाया कि दक्षिण कोरिया ने एक लोकतांत्रिक राज्य के रूप में कितना प्रगति की है।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
दक्षिण कोरिया की राजनीतिक स्थिरता केवल उसके 5.2 करोड़ नागरिकों के लिए ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। यह देश उत्तर कोरिया के अधिनायकवादी शासन और उसके सहयोगियों व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग के बीच अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है।
यह घटना यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र, अधिनायकवादी प्रवृत्तियों के सामने कितना नाजुक हो सकता है, लेकिन साथ ही यह आशा भी देती है। दक्षिण कोरियाई सांसदों, नागरिकों और संस्थानों की त्वरित प्रतिक्रिया ने यह साबित किया कि लोकतंत्र गंभीर खतरों के बावजूद भी विजयी हो सकता है।
लोकतंत्र की जीत
इस संकट का समाधान यह पुष्टि करता है कि दक्षिण कोरिया की लोकतांत्रिक नींव मजबूत है और उसके लोग अधिनायकवाद को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। जैसे-जैसे राष्ट्रपति यून के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होती है, देश ने दिखा दिया है कि उसका लोकतंत्र ऐसे तूफानों को सहने में सक्षम है।
ऐसे समय में जब लोकतांत्रिक गिरावट एक बढ़ती हुई चिंता है, दक्षिण कोरिया द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनः स्थापना न केवल उसके नागरिकों के लिए, बल्कि विश्वभर के लोकतंत्रों के लिए भी एक उत्सव का कारण है।