Thursday, July 3, 2025
No menu items!
More

    Latest Posts

    बस्तर की सेहत को मिली नई साँस — विष्णु सरकार की स्वास्थ्य नीति की असली परीक्षा

    लेखकीय दृष्टिकोण से विशेष रिपोर्ट

    बस्तर—एक ऐसा नाम जो दशकों तक विकास से कटेपन, भय और उपेक्षा का प्रतीक रहा। लेकिन आज, बस्तर धीरे-धीरे एक नए अध्याय की ओर बढ़ रहा है। नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में अब प्राथमिक चर्चा गोली-बंदूक की नहीं, बल्कि अस्पतालों, डॉक्टरों और इलाज की हो रही है। और इस परिवर्तन की जड़ में है — छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार की नई स्वास्थ्य सोच

    🔍 एक बदलाव जो दिख रहा है, महसूस हो रहा है

    सरकारी दावों से परे, यदि आप बस्तर के किसी दूरस्थ गांव में जाकर देखें, तो यह बदलाव अब कागज़ों तक सीमित नहीं रहा। कई वर्षों बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि सरकारी अस्पतालों में नियमित डॉक्टर मिल रहे हैं, और मितानिनें केवल नाम की नहीं, बल्कि असल मददगार बन चुकी हैं।

    📊 आंकड़ों से परे जमीनी असर

    • पिछले डेढ़ वर्षों में 130 स्वास्थ्य केंद्रों को राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक (NQAS) का सर्टिफिकेशन मिला।
    • कांकेर, बीजापुर, सुकमा जैसे जिलों में भी स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ज़्यादा सुलभ हैं।
    • 117 नए मेडिकल ऑफिसर, 33 विशेषज्ञ, और 1 डेंटल सर्जन की नियुक्ति की गई।
    • 291 पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है — यानी अभी भी रास्ता अधूरा है।

    ये आँकड़े सरकार के प्रयासों को दर्शाते हैं, पर असली सवाल यह है: क्या ये प्रयास बस्तर के लोगों के जीवन को वास्तव में बेहतर बना रहे हैं?

    🧭 नक्सलवाद बनाम स्वास्थ्य सुविधाएं: असली संघर्ष

    बस्तर की असली चुनौती सिर्फ स्वास्थ्य सेवा की कमी नहीं थी — असली दुश्मन था भरोसे का अभाव। लोग सरकार पर भरोसा नहीं करते थे, और सरकार जमीनी हकीकत को नहीं समझती थी। लेकिन अब पहली बार, मितानिनों की मेहनत और स्थानीय कर्मचारियों की भागीदारी से एक पुल तैयार हुआ है

    मलेरिया उन्मूलन अभियान और क्षय रोग रोकथाम में घर-घर जाकर उपचार देना, स्थानीय भाषाओं में समझाना, और लोगों को डराने के बजाय विश्वास में लेना — यही असली बदलाव है।

    💳 आयुष्मान और राशन कार्ड नहीं, पहचान की बहाली

    नेल्लानार योजना के तहत हजारों राशन कार्ड और आयुष्मान कार्ड जारी हुए हैं, लेकिन बस्तर में इसका महत्व सिर्फ इलाज का नहीं है — यह उन लोगों के लिए पहचान का दस्तावेज बन गया है, जो अब तक किसी सिस्टम का हिस्सा ही नहीं थे।

    ✍️ राजनीति से ऊपर उठता प्रयास?

    यह ज़रूरी सवाल है — क्या यह सब सिर्फ चुनावी रणनीति है या ईमानदार सुशासन की शुरुआत? विष्णु देव साय के प्रशासन का रवैया “टॉप-डाउन” से ज़्यादा “ग्राउंड-अप” दिखता है। भर्ती प्रक्रियाएं, स्टाफ की तैनाती, और फील्ड में अफसरों की सक्रियता यह बताती है कि सरकार कागज़ पर नहीं, ज़मीन पर काम कर रही है

    ✅ निष्कर्ष: उम्मीद की नई रेखा

    बस्तर में स्वास्थ्य सेवाएं अब सिर्फ़ इलाज का माध्यम नहीं, बल्कि भरोसे, भागीदारी और बदलाव का चेहरा बन रही हैं। बदलाव अभी अधूरा है, समस्याएं अभी बाकी हैं, लेकिन अब कम से कम लोग कह पा रहे हैं — “अब हमारी बात सुनी जा रही है।”

    Latest Posts

    spot_imgspot_img

    Don't Miss

    Stay in touch

    To be updated with all the latest news, offers and special announcements.