Monday, October 13, 2025

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प्रगति की पटरी पर भारत

प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि और कनेक्टिविटी का नया अध्याय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल ही में कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ में चार प्रमुख रेलवे मल्टी-ट्रैकिंग परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है। पहली नज़र में यह एक साधारण अवसंरचनात्मक निर्णय प्रतीत हो सकता है, लेकिन वस्तुतः यह भारत की आत्मनिर्भरता की राह पर डाला गया एक दूरगामी कदम है। लगभग 24,634 करोड़ रुपये की लागत से 894 किलोमीटर नई रेल लाइनों का निर्माण केवल ट्रैक बिछाने का कार्य नहीं है, यह भारत की आर्थिक धमनियों को और सशक्त करने का प्रयास है।

आत्मनिर्भर भारत की ओर गतिशीलता की नई परिभाषा

इन परियोजनाओं में मध्यप्रदेश प्रमुख लाभार्थियों में से एक है। इटारसी-भोपाल-बिना चौथी लाइन और वडोदरा-रतलाम तृतीय व चतुर्थ लाइन राज्य के सामाजिक-आर्थिक नक्शे को नया रूप देने जा रही हैं। जब रेल नेटवर्क का विस्तार होता है, तो केवल ट्रेनें नहीं, बल्कि संभावनाएँ और सपने भी गति पकड़ते हैं। प्रधानमंत्री के “गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान” के तहत यह परियोजनाएँ लोगों, वस्तुओं और सेवाओं को एक निर्बाध आर्थिक जाल में पिरोने का लक्ष्य रखती हैं।

प्रधानमंत्री मोदी का यह स्पष्ट विश्वास है कि कनेक्टिविटी ही आत्मनिर्भरता की नींव है। लगभग 3,633 गाँवों और 85 लाख से अधिक नागरिकों, जिनमें दो आकांक्षी ज़िले विदिशा और राजनांदगाँव शामिल हैं, के लिए ये रेललाइनें सिर्फ़ यात्रा का माध्यम नहीं, बल्कि रोज़गार, बाज़ार, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ने का माध्यम बनेंगी।

जहाँ धरोहर मिलती है अवसर से

इन परियोजनाओं का मार्ग केवल औद्योगिक गलियारों तक सीमित नहीं है; यह भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों से होकर गुजरता है। साँची, भीमबेटका, सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व, हज़ारा जलप्रपात और नवेगाँव राष्ट्रीय उद्यान जैसे स्थलों को जोड़कर रेलमार्ग पर्यटन और आजीविका दोनों को गति देंगे। यह भारत की उस विकास अवधारणा का प्रतीक है जिसमें संस्कृति और समृद्धि साथ-साथ चलती हैं।

इन परियोजनाओं से सालाना 78 मिलियन टन अतिरिक्त माल परिवहन की क्षमता बढ़ेगी, जिससे उद्योगों को गति मिलेगी। बंदरगाहों, कारखानों और उत्पादन केंद्रों के लिए यह दक्षता और लागत में क्रांतिकारी सुधार लाएगा।

विकास के साथ पर्यावरण का संतुलन

इन रेल परियोजनाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को साथ लेकर चलती हैं। इनके पूर्ण होने पर देश की कच्चे तेल की खपत में करीब 280 मिलियन लीटर की कमी आएगी और लगभग 1.39 अरब किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन में कमी होगी जो 6 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है। यह दर्शाता है कि हरित विकास केवल नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बन चुका है।

केंद्र और राज्यों की साझी जिम्मेदारी

इतनी विशाल परियोजनाओं का क्रियान्वयन केंद्र और राज्य के बीच समन्वय के बिना संभव नहीं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सही कहा कि यह परियोजनाएँ राज्य को भारत के लॉजिस्टिक्स और मोबिलिटी हब के रूप में विकसित करने की दिशा में ठोस कदम हैं। जब केंद्र दृष्टि देता है और राज्य उसे धरातल पर उतारते हैं, तो विकास केवल आंकड़ों में नहीं, ज़मीनी हकीकत में दिखता है।

नई सदी का रेल भारत

सन् 2030 तक जब ये रेल लाइने पूरी तरह चालू होंगी, तो वे केवल स्टील की पटरी नहीं होंगी, बल्कि एक ऐसी कहानी की गवाह होंगी जिसमें समन्वय, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता साथ चल रहे हैं। यह विकास केवल किलोमीटरों में नहीं मापा जाएगा, बल्कि उन जीवनों में झलकेगा जो इन रेलमार्गों से जुड़कर बदलेंगे।

ये सचमुच “प्रगति की पटरी” हैं जो भारत को और अधिक मजबूत, जुड़ा हुआ और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।

 

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